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________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-१ // 159 // 1 शतके उद्देशकः८ सूत्रम् 70 सवीर्यावीर्य जयपराजय दोभंते! पुरिसा सरिसया सरित्तया सरिव्वया सरिसभंडमत्तोवगरणा अन्नमन्नेणं सद्धिं संगाम संगामेन्ति, तत्थणं एगे पुरिसे पराइणइ एगे पुरिसे पराइज्जइ, से कहमेयं भंते! एवं?, गोयमा! सवीरिए पराइणइ अवीरिए पराइज्जइ, से केणट्टेणं जाव पराइज्जइ?, गोयमा! जस्सणं वीरियवज्झाई कम्माईणो बद्धाइंणो पुट्ठाईजावनो अभिसमन्नागयाईनो उदिन्नाई उवसंताई भवंति सेणं पराइणइ, जस्स णं वीरियवज्झाई कम्माईबद्धाइं जाव उदिन्नाईनो उवसंताई भवंति से णं पुरिसे पराइजइ, से तेणद्वेणं गोयमा! एवं वुच्चइ सवीरिए पराइणइ अवीरिए पराइज्जड़।सूत्रम् 70 // सरिसय त्ति सदृशकौ कौशलप्रमाणादिना, सरित्तय त्ति 'सदृक्त्वचौ' सदृशच्छवी सरिव्वय त्ति सहग्वयसौ समानयौवनाद्यवस्थौ, सरिसभंडमत्तोवगरण त्ति भाण्डं भाजनं मृन्मयादि मात्रो मात्रया युक्तउपधिः, स च कांस्यभाजनादिभोजनभण्डिका भाण्डमात्रा वा गणिमादिद्रव्यरूपः परिच्छदः, उपकरणान्यनेकधाऽऽवरणप्रहरणादीनि ततः सदृशानि भाण्डमात्रोपकरणानि ययोस्तौ तथा, अनेन च समानविभूतिकत्वं तयोरभिहितम्, सवीरिए त्ति सवीर्यः, वीरियवज्झाइ न्ति वीर्य वध्यं येषां तानि तथा॥७०॥वीर्यप्रस्तावादिदमाह जीवाणं भंते! किंसवीरिया अवीरिया?, गोयमा! सवी० वि अवी० वि, से केणद्वेणं?, गोयमा! जीवा दुविहा पन्नता, तंजहासंसारसमावन्नगा य असंसारसमावन्नगा य, तत्थ णं जे ते असंसारसमावन्नगा ते णं सिद्धा, सिद्धा णं अवी०, तत्थ णं जे ते / संसारसमावन्नगा ते दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-सेलेसिपडिवनगा य असेलेसिपडिवन्नगाय, तत्थणंजे ते सेलेसिप० तेणं लद्धिवीरिएणं सवी करणवीरिएणं अवी०, तत्थणं जे ते असेलेसिप० तेणं लद्धिवीरिएणं सवी करणवीरिएणं सवी० वि अवी० वि, से तेणटेणं गोयमा! एवं वुचइ-जीवा दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-सवी० वि अवी० वि / नेरइया णं भंते! किं सवी० अवी०?, गोयमा! नेरइया प्रश्नाः / सूत्रम् 71 वीर्यस्त लब्धिकरणादि विचारः प्रश्नाः / // 159 //
SR No.600443
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages578
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size39 MB
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