________________ श्रीभगवत्य श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-१ // 153 // तदभिधानाय चाष्टमोद्देशकसूचकसूत्रम् रायगिहे समोसरणं जाव एवं वयासी - एर्गतबाले णं भंते! मणूस्से किं नेरइयाउयं पकरेइ तिरिक्ख० मणु० देवा० पक०?, नेरइयाउयं किच्चा नेरइएसु उव० तिरियाउयं कि० तिरिएसु उवव० मणुस्साउयं० मणुस्से० उव० देवाउ० कि० देवलोएसु० उववजइ?, गोयमा! एगंतबाले णं मणुस्से नेरइयाउयं पिपकरेइ तिरि० मणु० देवाउयंपि पकरेइ, नेरइयाउयंपि किच्चा नेरइएसु उव० तिरि० मणु० देवाउयं किच्चा तिरि० मणु० देवलोएसु उववज्जइ // सूत्रम् 63 // एगंतबाल इत्यादि, 'एकान्तबालः' मिथ्यादृष्टिरविरतो वा, एकान्तग्रहणेन मिश्रतां व्यवच्छिनत्ति, यच्चैकान्तबालत्वे समानेऽपि नानाविधायुर्बन्धनं तन्महारम्भाधुन्मार्गदेशनादितनुकषायत्वाद्यकामनिर्जरादितद्धेतुविशेषवशादिति,अत एव बालत्वे समानेऽप्यविरतसम्यग्दृष्टिर्मनुष्यो देवायुरेव प्रकरोति न शेषाणि // 63 // एकान्तबालप्रतिपक्षत्वादेकान्तपण्डितसूत्रम्, तत्र च एगंतपंडिए णं भंते! मणुस्से किं नेर० पकरेइ जाव देवाउयं किच्चा देवलोएसु उवव०?, गोयमा! एगंतपंडिए णं मणुस्से आउयं सिय पकरेइ सिय नो पकरेइ, जइ पकरेइ नो नेरइया० पकरेइ नो तिरि० नो मणु देवाउयं पकरेइ, नो नेरइयाउयं किच्चा नेर० उव० णो तिरि० णो मणुस्स० देवाउयं किच्चा देवेसु उव०, से केणटेणं जाव देवा० किच्चा देवेसु उव०?, गोयमा! एगंतपंडियस्स णं मणुसस्स केवलमेव दो गईओ पन्नायंति, तंजहा- अंतकिरिया चेव कप्पोववत्तिया चेव, से तेणटेणं गोयमा! जाव देवाउयं किच्चा देवेसु उव०॥ बालपंडिए णं भंते! मणूस्से किं नेरइयाउयं पकरेइ जाव देवाउयं किच्चा देवेसु उव०?, गोयमा! नो नेरइयाउयं पकरेइ जाव एकस्मिन् मूल पुस्तके एतद्वाक्यं नोपलभ्यते। 1 शतके उद्देशकः८ सूत्रम् 63 एकान्तबालस्यगति प्रश्नाः / सूत्रम् 64 पण्डितबालपण्डितयोरुत्पाद प्रश्नाः / // 153 //