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________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-१ // 150 // गब्भगए समाणे देवलोगेसु उव०?, गोयमा! अत्थेगइए उव० अत्थेगइएनो उववजेजा, सेकेणटेणं?, गोयमा! सेणं सन्नी पंचिंदिए सव्वाहिं पजत्तीहिं पज्जत्तए तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतिए एगमवि आयरियं धम्मियं सुवयणं सोच्चा निसम्म तओ भवइ संवेगजायसढे तिव्वधम्माणुरागरत्ते, से णं जीवे धम्मकामए पुण्णका० सग्गका मोक्खका० धम्मकंखिए पुण्णकं० सग्गमोक्खक० धम्मपिवासिए पुण्णसग्गमोक्खपि० तच्चित्ते तम्मणे तल्लेसे तदज्झवसिए तत्तिव्वज्झवसाणे तदट्ठोवउत्ते तदप्पियकरणे तब्भावणाभाविए एयंसिणं अंतरंसि कालं करे० देवलो० उव०, से तेणटेणं गोयमा! / जीवेणं भंते! गब्भगए समाणे उत्ताणए वा पासिल्लए वा अंबखुज्जए वा अच्छेज वा चिटेज वा निसीएज वा तुयटेज वा माऊए सुयमाणीए सुवइ जागरमाणीए जागरइ सुहियाए सुहिए भवइ दुहियाए दुहिए भवइ?, हंता गोयमा! जीवेणं गब्भगए समाणे जाव दुहियाए दुहिए भवइ, अहे णं पसवणकाल समयंसि सीसेण वा पाएहिंवा आगच्छइ सममागच्छइ तिरियमागच्छइ विणिहायमागच्छड़॥वण्णवज्झाणि य से कम्माइंबद्धाई पुट्ठाई निहत्ताई कडाइं पट्ठवियाई अभिनिविट्ठाई अभिसमन्नागयाइं उदिन्नाइं नो उवसंताई भवंति तओ भवइ दुरूवे दुव्वन्ने दुग्गंधे दूरसे दुप्फासे अणिढे अकंते अप्पिए असुभे अमणुन्ने अमणामे हीणस्सरे दीणसरे अणिट्ठस्सरे अकंतस्सरे अप्पियस्सरे असुभस्सरे अमणुन्नस्सरे अमणामस्सरे अणाएज्जवयणे पञ्चायाए यावि भवइ, वन्नवज्झाणि य से कम्माई नो बद्धाइं पसत्थं नेयव्वं जाव आदेजवयणे पच्चायाएयावि भवइ, सेवं भंते! शत्ति॥सूत्रम् ६२॥सत्तमो उद्देसो समत्तो॥१-७॥ गब्भगए समाणे त्ति गर्भगतः सन्मृत्वेति शेषः, एगइए त्ति सगर्वराजादिगर्भरूपः, सज्ञित्वादिविशेषणानि च गर्भस्थस्यापि नरकप्रायोग्यकर्मबन्धसम्भवाभिधायकतयोक्तानि, वीर्यलब्ध्या वैक्रियलब्ध्या संग्रामयतीति योगः, अथवा वीर्यलब्धिको वैक्रियलब्धिकश्च सन्निति, पराणीएणं ति परानीकं शत्रुसैन्यम्, सोच्च त्ति, आकर्ण्य निशम्य मनसावधार्य, पएसे निच्छुभइ त्ति १शतके उद्देशक:७ सूत्रम् 62 गर्भस्य देवनरकयोरूत्पाद प्रश्नाः / योन्या निष्क्रमणप्रकारप्रश्नाः। जातस्य शुभाशुभवर्णादिआदेयतादि प्रश्नाः / // 150 //
SR No.600443
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages578
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size39 MB
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