________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-१ // 147 // 1 शतके उद्देशकः७ सूत्रम् 61 गर्भशास्त्रम्। गर्भस्येन्द्रिय यवत्त्वाहारादि प्रश्नाः / केणटेणं?, गोयमा! दविंदियाइं पडुच्च अणिदिए व० भाविंदियाइं पडुच्च सइंदिए व०, से तेणटेणं० / जीवे णं भंते! गब्भं वक्कममाणे किंससरीरी व० असरीरी व०?, गोयमा! सियससरीरीव० सिय असरीरीव०, सेकेणढेणं?, गोयमा! ओरालिय वेउव्विय आहारयाई पडुच्च असरीरी व० तेयाकम्मा०प० सस वक्त से तेणटेणं गोयमा!। जीवेणंभंते! गब्भंवक्कममाणे तप्पढमयाए किमाहारमाहारेइ?, गोयमा! माउओयं पिउसुक्नं तं तदुभयसंसिटुं कलुसं किव्विसं तप्पढमयाए आहारमाहारेइ। जीवे णं भंते! गब्भगए समाणे किमाहारमाहारेइ?, गोयमा! जं से माया नाणाविहाओ रसविगईओ आहारमाहारेइ तदेक्कदेसेणं ओयमाहारेइ / जीवस्स णं भंते! गब्भगयस्स समाणस्स अत्थि उच्चारेइ वा पासवणेइ वा खेलेइ वा सिंघाणेइ वा वंतेइ वा पित्तेइ वा?, णो इणढे समढे, सेकेणटेणं?, गोयमा! जीवेणं गब्भगए समाणे जमाहारेइतं चिणाइतं सोइंदियत्ताए जाव फासिंदियत्ताए अट्ठिअट्ठिमिंजकेसमंसुरोमनहत्ताए,से तेणटेणं / जीवे णं भंते! गब्भगए समाणे पभू मुहेणं कावलियं आहारं आहारित्तए?, गोयमा! णो इणढे समढे, से केणट्टेणं?, गोयमा! जीवे णं गब्भगए समाणे सव्वओ आहारेइ सव्वओ परिणामेइ सव्वओ उस्ससइ सव्वओ निस्ससइ अभिक्खणं आ० अभिक्खणं परि० अभिक्खणं ऊ० अभिक्खणं नि० आहच्च आहारेइ आहच्च परि० आहच्च ऊ० आहच्च नी० // माउजीवरसहरणी पुत्तजीवरसहरणी माउजीवपडिबद्धा पुत्तजीवं फुडा तम्हा आहारेइ तम्हा परि०, अवरा वि य णं पुत्तजीवपडिबद्धा माउजीवफुडा तम्हा चिणाइ तम्हा उवचिणाइसे तेणटेणंजाव नो पभूमुहेणं कावलियं आहारं आहारित्तए। कइणं भंते! माइअंगा पण्णत्ता?, गोयमा! तओ माइयंगा प०, तंजहा- मंसे सोणिए मत्थुलुंगे। कइणं भंते! पिइयंगा पण्णत्ता? गोयमा! तओ पिइयंगा पण्णत्ता, तंजहा- अट्ठि अट्ठिमिंजा केसमंसुरोमनहे। अम्मापिइए णं भंते! सरीरए केवइयं कालं संचिट्ठइ?, गोयमा! जावइयं से कालं भवधारणिजे सरीरए अव्वावन्ने भवइ एवतियं कालंसं०, अहे णं समए 2 वोक्कसिन्जमाणे 2 चरमकालसमयंसि वोच्छिन्ने भवइ॥ सूत्रम् 61 // // 147 //