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________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय. वृत्तियुतम् भाग-१ // 134 // १शतके उद्देशक:६ सूत्रम् 52 अष्टादशपापस्थानक्रियास्पृष्टास्पृष्ट प्रश्नाः। आतपान्तं चतसृषु दिक्षुस्पृशति तथा तस्या एव छायाया भूमेः सकाशात्तव्यं यावदुच्छ्रयोऽस्ति, ततश्च छायान्त आतपान्तमूर्ध्वमधश्च स्पृशति, अथवा प्रासादवरण्डिकादेर्या छाया तस्या भित्तेरवतरन्त्या आरोहन्त्या वाऽन्त आतपान्तमूर्ध्वमधश्च स्पृशतीति भावनीयम्,अथवा तयोरेव छायाऽऽतपयोःपुद्गलानामसङ्खयेयप्रदेशावगाहित्वादुच्छ्रयसद्भावः, तत्सद्भावाच्चोर्ध्वाधोविभागः, ततश्च छायान्त आतपान्तमूर्ध्वमधश्च स्पृशतीति / / 51 / / स्पर्शनाधिकारादेव च प्राणातिपातादिपापस्थानप्रभवकर्मस्पर्शनामधिकृत्याह___अत्थिणं भंते! जीवाणं पाणाइवाएणं किरिया कज्जइ?, हंता अत्थि।सा भंते! किंपुट्ठा कज्जइ अपुट्ठा कज्जइ?, जाव निव्वाघाएणं छद्दिसिं वाघायं पडुच्च सिय तिदिसिं सिय चउदिसिं सिय पंचदिसिं।सा भंते! किं कडा कज्जइ अकडा कज्जइ?, गोयमा! कडा कज्जइ नो अकडा कन्जइ। सा भंते! किं अत्तकडा कज्जइ परकडा कज्जइ तदुभयकडा कज्जइ?, गोयमा! अत्तकडा कज्जइ णो परकडा कजइणो तदुभयकडा कन्जइ / साभंते! किं आणुपुव्विं कडा कजइ अणाणुपुव्विं कडा कजइ?, गोयमा! आणुपुव्विं कडा कज्जइ नो अणाणुपुव्विं कडा कज्जइ, जाय कडा जाय कज्जइ जाय कजिस्सइ सव्वा सा आणुपुट्विं कडा नो अणाणुपुव्विं कडत्ति वत्तव्वं सिया। अत्थिणं भंते! नेरइयाणं पाणाइवायकिरिया कज्जइ?, हंता अत्थि।सा भंते! किं पुट्ठा कज्जइ अपुट्ठा कज्जइ जाव नियमा छद्दिसिं कज्जइ, सा भंते! किं कडा कज्जइ अकडा कज्जइ?, तंचेव जाव नो अणाणुपुब्विं कडत्ति वत्तव्वं सिया, जहा नेरइया तहा एगिदियवज्जा भाणियव्वा, जाव वेमाणिया, एगिदिया जहा जीवा तहा भाणियव्वा, जहा पाणाइवाए तहा मुसावाए तहा अदिन्नादाणे मेहुणे परिग्गहे कोहे जाव मिच्छादसणसल्ले, एवं एए अट्ठारस, चउवीसं दंडगा भाणियव्वा, सेवं भंते! 2! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवंजाव विहरति // सूत्रम् 52 // // 13
SR No.600443
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages578
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size39 MB
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