________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-१ // 114 // १शतके उद्देशक:५ सूत्रम् 43 नारकादीनां पृथिवीकायावास प्रश्नाः / ॥प्रथमशतके पञ्चमोद्देशकः॥ अनन्तरोद्देशकस्यान्तिमसूत्रेष्वर्हदादय उक्तास्ते च पृथिव्यां भवन्तीति, अथवा पृथिवीतोऽप्युद्धृत्य मनुजत्वमवाप्ताः सन्तस्ते भवन्तीति पृथिवीप्रतिपादनायाह तथा पुढवि त्ति यदुद्देशकसङ्ग्रहिण्यामुक्तं तत्प्रतिपादनाय चाह कति णं भंते! पुढवीओ पन्नत्ताओ?, गोयमा! सत्त पुढवीओ पन्नत्ताओ, तंजहा- रयणप्पभा जाव तमतमा // इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए कति निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता?, गोयमा! तीसं निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता, गाहा-तीसाय पन्नवीसा पन्नरस दसेव या सयसहस्सा / तिन्नेगं पंचूर्ण पंचेव अणुत्तरा निरया॥१॥केवइयाणं भंते? असुरकुमारावाससयसहस्सा पन्नत्ता?, एवं चउसट्ठी असुराणंचउरासीईय होइ नागाणं। बावत्तरिंसुवन्नाणंवाउकुमाराण छन्नउई॥१॥दीव-दिसा-उदहीणं विजुकुमारिंदथणियमग्गीणं / छण्डंपि जुयलयाणं छावत्तरिमो सयसहस्सा // 2 // केवइया णं भंते! पुढविक्काइयावाससयसहस्सा पण्णत्ता?, गोयमा! असंखेज्जा पुढविक्काइयावाससयसहस्सा पण्णत्ता, जाव असंखिज्जा जोतिसियविमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता / सोहम्मे णं भंते! कप्पे केवइया विमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता?, गोयमा! बत्तीसं विमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता, एवं बत्तीसऽट्ठावीसा बारस अट्ठ चउरो सयसहस्सा। पन्ना चत्तालीसा छच्च सहस्सा सहस्सारे॥१॥आणयपाणयकप्पे चत्तारि सयाऽऽरणऽचुए तिन्नि / सत्त विमाणसयाईचउसु वि एएसुकप्पेसुं॥२॥ एक्कारसुत्तरं हेट्टिमेसु सत्तुत्तरंसयंच मज्झिमए / सयमेगं उवरिमए पंचेव अणुत्तरविमाणा॥३॥सूत्रम् 43 // तत्र रयणप्पभ त्ति नरकवर्ज प्रायः प्रथमकाण्ड इन्द्रनीलादिबहुविधरत्नसम्भवाद्रत्नानां प्रभा दीप्तिर्यस्यां सा रत्नप्रभा, यावत्करणादिदं दृश्यम्, शर्कराप्रभा वालुकाप्रभा पङ्कप्रभा धूमप्रभा तमः प्रभेति, शब्दार्थश्च रत्नप्रभावदिति, तमतम त्ति // 114 //