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________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-१ // 107 // 1 शतके उद्देशकः 4 सूत्रम् 39 मोहनीयोदयादुपस्थानादि बालवीर्यतादि कइविहो कस्स त्ति कस्य कर्मणः कतिविधो रसः? इति द्वारम्, इदं चैवं णाणावरणिज्जस्स णं भंते! कम्मस्स कतिविहे अणुभागे पण्णत्ते? गोयमा! दसविहे अणुभागे पण्णत्ते, तंजहा- सोयावरणे सोयविन्नाणावरणइत्यादि, द्रव्येन्द्रियावरणो भावेन्द्रियावरणश्चेत्यर्थः।। 38 // अथ कर्मचिन्ताधिकारान्मोहनीयमाश्रित्याह, जीवेणंभंते! मोहणिजेणंकडेणं कम्मेणं उदिनेणं उवट्ठाएजा? हंता उवट्ठाएजा।सेभंते! किंवीरियत्ताए उवट्ठाएजा? अवीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा? गोयमा! वीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा नो अवीरियत्ताए उवट्ठाएजा, जइ वीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा किं बालवीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा पंडियवीरियत्ताए उवट्ठाएजा? बालपंडियवीरियत्ताए उवट्ठाएजा?, गोयमा! बालवीरियत्ताए उवट्ठाएजा णो पंडियवीरियत्ताए उवट्ठाएजाणो बालपंडियवीरियत्ताए उवट्ठाएजा! जीवेणंभंते! मोहणिजेणंकडेणं कम्मेणं उदिनेणं अवक्कमेजा? हंता अवक्कमेजा, से भंते! जाव बालपंडियवीरियत्ताए अवक्कमेजा 3?, गोयमा! बालवीरियत्ताए अवक्कमेजा नो पंडियवीरियत्ताए अवक्कमेजा, सिय बालपंडियवीरियत्ताए अवक्कमेजा। जहा उदिनेणं दो आलावगा तहा उवसंतेण वि दो आलावगा भाणियव्वा, नवरं उवट्ठाएज्जा पंडियवीरियत्ताए, अवक्कमेजा बालपंडियवीरियत्ताए॥ से भंते! किं आयाए अवक्कमइ अणायाए अवक्कमइ? गोयमा! आयाए अवक्कमइ णो अणायाए अवक्कमइ, मोहणिज्जं कम्मं वेएमाणे से कहमेयं भंते! एवं? गोयमा! पुव्विं से एयं एवं रोयइइयाणिं से एयं एवं नो रोयइ एवं खलु(एयं) एवं / सूत्रम् 39 // मोहणिज्जेणं ति मिथ्यात्वमोहनीयेन, उदिण्णेणं ति, उदितेन, उवट्ठाएज ति, उपतिष्ठेदुपस्थानं परलोकक्रियास्वभ्युपगमं कुर्यादित्यर्थः, वीरियत्ताए त्ति वीर्ययोगाद्वीर्यः प्राणी, तद्भावो वीर्यता, अथवा वीर्यमेव स्वार्थिकप्रत्ययावीर्यता वीर्याणां वा भावो वीर्यता, तया, अवीरियत्ताए त्ति, अविद्यमानवीर्यतया वीर्याभावेनेत्यर्थः, नो अवीरियत्ताए त्ति वीर्यहेतुकत्वादुपस्थानस्येति। // 107 //
SR No.600443
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages578
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size39 MB
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