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________________ श्रीअनुयोगद्वारंमलधारि श्रीहेमचन्द्रसूरि वृत्तियुतम्। | // 64 // अणुवउत्ता तावइयाइं ताइंदव्वखंधाइं (2) एवमेव ववहारस्सवि। (3) संगहस्स एगोवा अणेगावा अणुवउत्तो वा अणुवउत्ता वा दव्वखंधे वा दव्वखंधाणि वा से एगे दव्वखंधे। (4) उज्जुसुयस्स एगो अणुवउत्तो आगमओ एगे दव्वखंधे, पुहत्तं णेच्छति / (5) तिण्हं सद्दणयाणंजाणए अणुवउत्ते अवत्थू। कम्हा? जइजाणए कहं अणुवउत्ते भवति?। सेतं आगमओ दव्वखंधे॥सूत्रम् 57 // से किंतंणोआगमतो दव्वखंधे? 2 तिविहे पण्णत्ते। तंजहा- जाणगसरीरदव्वखंधे 1, भवियसरीरदव्वखंधे 2, जाणगसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वखंधे 3 // सूत्रम् 58 // से किं तं जाणगसरीरदव्वखंधे? 2 खंधे इ पयत्थाहिगारजाणगस्स जाव खंधे इ पयं आपवियं पण्णवियं परूवियं जाव से तं जाणगसरीरदव्वखंधे।सूत्रम् 59 // से किंतं भवियसरीरदव्वखंधे? 2 जे जीवे जोणिजम्मणनिक्खंतेजाव खंधेइपयंसेकाले सिक्खिस्सइ / जहा को दिटुंतो? अयं महुकुंभे भविस्सइ, अयं घयकुंभे भविस्सति / सेतं भवियसरीरदव्वखंधे॥सूत्रम् 60 // से किंतं जाणगसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वखंधे? 2 तिविहे पण्णत्ते / तंजहा सचित्ते 1, अचित्ते 2, मीसए 3 // सूत्रम् 61 // ( // 46 // ) द्रव्यस्कन्धसूत्रमपि भव्यशरीरद्रव्यस्कन्धसूत्रं यावद्दव्यावश्यकोक्तव्याख्यानुसारेणैव भावनीयं प्रायस्तुल्यवक्तव्यत्वादिति। से किंतंजाणगसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वखंधे, इति प्रश्न निर्वचनमाह- जाणगसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वखंधे तिविहे, इत्यादि। ज्ञशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यस्कन्धस्त्रिविधः प्रज्ञप्तः / तद्यथा सचित्तोऽचित्तो मिश्रः॥५६-६१॥ तत्राऽऽद्यभेदं जिज्ञासुः 0 पन्नत्ते', इत्यधिकं वर्तते। स्कन्धस्य निक्षेपाः। सूत्रम् 56-61 ||२सप्तनयाश्रित्या३.१गमतो द्रव्यस्कन्धस्तथा। 3.2 नोआगमतो, तस्य त्रयोभेदाः। // 64 //
SR No.600442
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_anuyogdwar
File Size31 MB
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