________________ स्कन्धस्य निक्षेपाः। श्रीअनुयोगद्वारंमलधारि श्रीहेमचन्द्रसूरि वृत्तियुतम्। // 63 // सूत्रम् 52-55 [१]नामादि चतुर्भेदाः। श्रुतमित्यर्थः॥५०॥साम्प्रतं यदुक्तं स्कन्धं निक्षेप्स्यामीति, तत्सम्पादनार्थमुपक्रमते, से किंतं खंधे?, 2 चउविहे पण्णत्ते, तंजहा- नामखंधे १ठवणाखंधे 2 दव्वखंधे 3 भावखंधे ४॥सूत्रम् 52 // ( // 44 // ) से किं तमित्यादि / अथ किं तत्स्कन्ध इत्युच्यत इति प्रश्ने निर्वचनमाह- खंधे चउविहे, इत्यादि॥५२॥ से किं तं नाम खंधे? 2 जस्स णंजीवस्स वा अजीवस्स वा जाव खंधेति णामं कजति / सेतं णाम खंधे // सूत्रम् 53 // से किंतं ठवणाखंधे? 2 जण्णं कट्ठकम्मे वा जाव खंधे इठवणा ठविति।सेतं ठवणा खंधे॥सूत्रम् 54 // णाम ठवणाणं को पतिविसेसो? नामं आवकहियं, ठवणा इत्तिरिया वा होज्जा आवकहिया वा ॥सूत्रम् 55 / / ( // 45 // ) अत्र नामस्कन्ध प्रतिपादनसूत्रं स्थापनास्कन्धप्रतिपादकसूत्रंचनामस्थापनावश्यकप्रतिपादकसूत्रव्याख्यानुसारेण स्वयमेव भावनीयम्॥५३-५५॥ से किं तं दव्वखंधे? 2 दुविहे पण्णत्ते / तंजहा-आगमूतो य 1, नोआगमतो य 2 // सूत्रम् 56 // (1) से किं तं आगमओ दव्वखंधे? 2 जस्सणं खंधे इपयं सिक्खियं ठियं जियं मियंजावणेगमस्स एगे अणुवउत्ते आगमओ एगे दव्वखंधे, दो अणुवउत्ता आगमओ दो(ण्णि) दव्वखंधाइं, तिण्णि अणुवउत्ता आगमओ तिण्णि दव्वखंधाई, एवं जावइया इत्यनुयोगद्वारग्रन्थे श्रुताधिकार: कथितः॥ 43 / / अथ स्कन्धाधिकारः कथ्यते' इत्यधिकं वर्तते। 753-55 सूत्रस्थाने 'नामट्ठवणाओ पुव्वभणिआणुक्कमेण (गयाओ-प्र०) भाणिअव्वाओ। सूत्रम् 45 // ' इत्येकमेव सूत्रं वर्तते। 0...खंधेत्ति पयं सिक्खियं सेसं जहा दव्वावसए तहा भाणिअव्वं, नवरं खंधाभिलावे जाव से किं तं जाणयसरीरभविअसरीर वइरित्ते दव्वखंधे? 2 तिविहे पन्नत्ते, तंजहा, सच्चित्ते अचित्ते मीसए / / सूत्रम् 46 / / ' सूत्र 57 शेषपाठादारभ्य यावत् सूत्र 61 स्थानेऽयं पाठोऽङ्कश्च वर्तते। // 63 //