________________ श्रीअनुयोगद्वारं मलधारि श्रीहेमचन्द्रसूरि वृत्तियुतम्। // 391 // ॥अथ निक्षेपाख्यं द्वितीयमनुयोगद्वारम् // से किंतं निक्खेवे?, 2 तिविहे पण्णत्ते, तंजहा- ओहनिप्फण्णे य नामनिप्फण्णे य सुत्तालावगनिप्फण्णे य॥ सूत्रम् 534 // से किंतं ओहनिप्फण्णे?, 2 चउविहे पण्णत्ते, तंजहा-अज्झयणे अज्झीणे आए झवणा॥ सूत्रम् 535 // से किंतं अज्झयणे?,२ चउव्विहे पण्णत्ते, तंजहा- णामज्झयणे ठवणज्झयणे दव्वज्झयणे भावज्झयणे ॥सूत्रम् 536 // णामट्ठवणाओ पुव्वं वण्णियाओ॥सूत्रम् 537 // . से किं तं दव्वज्झयणे?, 2 दुविहे पण्णत्ते, तंजहा- आगमओ य णोआगमओ य॥ सूत्रम् 538 // से किंतं आगमतो दव्वज्झयणे?, 2 जस्सणं अज्झयणे त्ति पदं सिक्खितं ठितं जितं मितं परिजितं जाव जावइया अणुवउत्ता आगमओ तावइयाइंदव्वज्झयणाई। एवमेव ववहारस्सवि।संगहस्सणं एगो वा अणेगो वा तं चेव भाणियत्वं, जाव से तं आगमतो दव्वज्झयणे॥सूत्रम् 539 // से किंतंणोआगमतो दव्वज्झयणे?,रतिविहे पण्णत्ते, तंजहा- जाणयसरीरदव्वज्झयणे भवियसरीरदव्वज्झयणे जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते द०॥सूत्रम् 540 // सेकिंतंजाणग०?,२ अज्झयणपयत्थाहिगारजाणयस्सजसरीरयंववगत चुत चइय चत्तदेहंजाव अहोणं इमेणं सरीरसमुस्सएणं अज्झयणेत्तिपदं आघवियं जाव उवदंसियं ति, जहा को दिटुंतो? अयं घयकुंभे आसी। अयं महुकुंभे आसी, से तं जाणयसरीर य' न वर्तते। ख। पयं सिक्खियं ठियं जियं मियं परिजियं जाव जावइआ..' इति रूपेण पाठो वर्तते। सरीरं ववगयचुअचाविअचत्तदेहं जीवविप्पजढं। 7 जिणदिटेणं भावेणं' इत्यधिकम् / [2] निक्षेपः। सूत्रम् 534-546 2.1 ओघ, 2.2 नाम, २.३सूत्रालापक निष्पन्नभेदाः। 2.1 ओघनिष्पन्नेऽध्ययनपदस्य नामादि चतुर्निक्षेपाः। // 391 //