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________________ [1] उपक्रमः। शा०उपा श्रीअनुयोगद्वारंमलधारि श्रीहेमचन्द्रसूरि वृत्तियुतम्। पाङ्गादीन्यपि गृह्यन्ते। ततश्चशङ्खप्रायोग्यं तिर्यग्गत्यादिनामकर्म नीचैर्गोत्रलक्षणंगोत्रकर्म च विपाकतो वेदयन्ति ये जीवास्त एते भावशङ्खाःप्रोच्यन्ते / तदेवं समाप्तंसङ्ख्याप्रमाणमतो निगमयति, से तं संखप्पमाणेत्ति / तत्समाप्तौ चावसितंभावप्रमाणमित्याह- सेतंभावप्पमाणेत्ति / एतदवसानेच निःशेषितंप्रमाणद्वारमित्युपसंहरति, से तं पमाणेत्ति। प्रमाणद्वारंसमाप्तम् // 520 // अथ क्रमप्राप्तं वक्तव्यताद्वारं निरूपयितुमाह १.४वक्तव्यता। // 380 // सूत्रम् 521-525 स्वसमयपरसमयोभयवक्तव्यता नयापेक्षया विभजनचा ॥अथोपक्रमानुयोगद्वारे वक्तव्याताख्यं चतुर्थप्रतिद्वारम् // से किंतंवत्तव्वया?, २तिविहा पण्णत्ता, तंजहा-ससमयवत्तव्वया परसमयवत्तव्वया ससमय परसमयवत्तव्वया ॥सूत्रम् 521 // से किंतंससमयवत्तव्वया?,२ जत्थ णं ससमए आघविज्जति पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति, से तंससमयवत्तव्वया / / सूत्रम् 522 // से किंतंपरसमयवत्तव्वया?,२ जत्थंणं परसमए आघविज्जति जाव उवदंसिज्जति, सेतं परसमयवत्तव्वया।सूत्रम् 523 // से किंतंससमयपरसमयवत्तव्वया?,२ जत्थणंससमए परसमए आघविज्जति जाव उवदंसिज्जइ, सेतंससमय परसमयवत्तव्वया ॥सूत्रम् 524 // इयाणी कोणओकंवत्तव्वयमिच्छति?, तत्थ णेगम ववहारा तिविहं वत्तव्वयं इच्छंति। तंजहा-ससमयवत्तव्वयं परसमयवत्तव्वयं ससमयपरसमयवत्तव्वयं (2) उज्जुसुओ दुविहं वत्तव्वयं इच्छति, तंजहा- ससमयवत्तव्वयं परसमयवत्तव्वयं / तत्थ णं जा सा 0वत्तव्वयं इच्छइ। लणेगमसंगहववहारा। // 380 //
SR No.600442
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_anuyogdwar
File Size31 MB
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