________________ श्रीअनुयोगद्वारंमलधारि श्रीहेमचन्द्रसूरि वृत्ति [2] उपक्रमः / शा० उपक्रमः। 1.3 प्रमाणम्। द्रव्यादिचतुर्भेदाः युतम्। 5866680688188888 // 298 // सूत्रम | 384-391 देवीणं, जाव गो०! जह० पलिओवमं, उक्को० सत्त पलिओवमाई। सोहम्मेणं भंते! कप्पे अपरिग्गहियाणंदेवीणं! (के०?,) जाव गो०! जहं० पलिओवम, उक्को० पन्नासं पलिओव(म)माइं, (3) ईसाणे णं भंते! कप्पे देवाणं, केवतिकालं ठिती पन्नत्ता? गो०! जहं० सातिरेगं पलिओवमं उक्को० सातिरेगाई दो सागरोवमाई। ईसाणे णं भंते! कप्पे (परिग्गहिआ)देवीणं, जाव गो०! जहं० सातिरेगंपलिओवम उक्को० नव पलिओवमाइं, इसाणेणं भंते कप्पे! अपरिग्गहियाणंदेवीणं (भंते! के०?,) जाव गो०! जहं० साइ० पलिओवमं, उक्को० पणपण्णं पलिओवमाइं। (4) सणंकुमारे णं भंते! कप्पे देवाणं केवइ कालं ठिती पन्नत्ता गो०! जहं० दो सागरोवमाई उक्कोसेणं सत्त सागरोवमाई। (5) माहिंदे णं भंते! कप्पे देवाणं जाव गो०! जहं० साइरेगाइंदो सागरोवमाई, उक्को० साइरेगाइं सत्त सागरोवमाई। (6) बंभलोएणं भंते! कप्पे देवाणंजाव गो०! जहं सत्तसागरोवमाई, उक्को० दस सागरोवमाई। एवं कप्पे कप्पे केवइ० पं०?, गो०! एवं भाणियव्वं-लंतए जहं० दस सागरोवमाइं, उक्को चो(चउ)दस सागरोवमाइं। महासुक्के जहं० चो(चउ)दस सागरोवमाई, उक्को० सत्तरस सागरोवमाइं। सहस्सारे जहं सत्तरस सागरोवमाइं, उक्को० अट्ठारस सागरोवमाइं। आणए जहं० अट्ठारससागरोवमाई, उक्को एक्कू(गूणवीसं सागरोवमाइं। पाणए जहं० एक्कू(गू)णवीसंसाग०, उक्को० वीसंसागरोवमाइं। आरणे जह० वीसंसागरोवमाई, उक्को एक्कवीसंसागरोवमाई। अच्चुए जहं० एक्कवीसं सागरोवमाइं, उक्को० बावीसं सागरोवमाइं। (8) हेट्ठिमहेट्ठिमगेविजविमाणेसुणंभंते! देवाणं केवइकालं ठिती पं०?,गोo!जहं० बावीसंसागरोवमाई, उक्को० तेवीसंसागरोवमाई, हेट्ठिममज्झिमगेवेजविमाणेसुणं (भंते! देवाणं केव०?,) जाव गो०! जहं० तेवीसं सागरोवमाई, उक्को० चउवीसं सागरोवमाई। हेट्ठिमउवरिमगेवेचविमाणेसु (णंभंते! देवाणं, गो०!) जाव जहं चउवीसंसाग० उक्को० पणु(पंच)वीसंसाग०।मज्झिमहेट्ठिमगेवेजविमाणेसु(केव०) जाव गो० जहं० पणु(ण)वीसं सागरोवमाई, उक्को० छव्वीसंसागरोवमाई।मज्झिममज्झिमगेवेजविमाणेसु, (णं कालप्रमाणम्। 1.3.3.2 विभा०नि० औप०कालः। |1.3.3.2.1-2 |ii.अद्धापल्योपम सागरोपमयोरसुरकुमारादिशेष दण्डकानामायु:स्थिति द्वारेण कथनम्। // 298 //