________________ श्रीअनुयोगद्वारंमलधारि श्रीहेमचन्द्रसूरि वृत्तियुतम्। // 296 // अंतो० उक्को० बावत्तरिं वाससहस्साई। अपज्जत्तयसंमुच्छिमखहयरपंचिंदिय० (पुच्छा), जाव गो०! जहं० अंतो० उक्वो० अंतो० / पज्जत्तगसंमुच्छिमखहयरपंचिंदिय० जावगोतमा! जह(नेणं) अंतो० उक्को० बावत्तरिंवाससहस्साई अंतोमुहुत्तूणाई। गन्भववंतियखहयर० जाव गो०! जहं० अंतो० उक्को० पलिओवमस्स असंखेजइभाग। अपजत्तयगब्भवक्त्रंतियखहयर० जाव गो०! जह(ण्णेणवि) अंतो० उक्को० अंतो०।पज्जत्तयगन्भवतियखहयरपंचिंदियतिरिक्ख (जोणिआणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता) जाव गो०! जहं० अंतो० उक्को० पलिओवमस्स असंखिज्जइभागं अंतोमुहुत्तूणों। (5) एत्थ एतेसिं (णं) संगहणिगाहाओ भवंति, तंजहासंमुच्छपुव्वकोडी चउरासीति भवे सहस्साई। तेवण्णा बायाला बावत्तरिमेव पक्खीणं / / 111 ।।गन्भं(तिम) मि पुव्वकोडी तिण्णि य पलिओवमाई परमाउं / उर भुयगपुव्वकोडी पलिउवमासंखभागो य / / 112 // सूत्रम् 387 // (1) मणुस्साणं भंते! केवइकालं ठिई पण्णत्ता, गो०! जह० अंतो० उक्को० तिण्णि पलिओवमाई। (2) संमुच्छिममणुस्साणं जाव गो०! जह(ण्णेणवि) अंतो० उक्कोसे० अंतो०। (3) गब्भवक्वंतियमणुस्साणं जाव (गो!) जहन्नेण अंतो० उक्को तिण्णि पलिओवमाइं। अपज्जत्तयगब्भ० मणुस्साणं (भंते! केवइ० पण्णत्ता?) जाव गो०! जह० अंतो० उक्को० अंतो०। पजत्तयगब्भ० मणुस्साणं (भंते! केवइ०), जाव गो०! जह० अंतो० उक्को तिण्णि पलि० अंतोमुहुत्तूणाई।सूत्रम् 388 // वाणमंतराणं भंते! देवाणं केवतिकालं ठिती पण्णत्ता?,गो०! जह० दस वाससहस्साई उक्को० पलिओवमं / वाणमंतरीणं भंते! देवीणं केव० पण्णत्ता?, गो०! जह० दस वाससहस्साई उक्को० अद्धपलिओवमं ॥सूत्रम् 389 // गा® गो। ॐणं / 0 समुच्छिम / 7 परमाऊ। उरग भुअ पुव्वकोडी...19 केवइयं० पण्णत्ता...1 0 कौंसान्तर्गताः सर्वे पाठा मुद्रित प्रतानुसारेण ज्ञातव्याः। [1] उपक्रमः। शा० उपक्रमः। 1.3 प्रमाणम्। द्रव्यादिचतुर्भेदाः सूत्रम 384-391 1.3.3 कालप्रमाणम्। 1.3.3.2 विभा०नि० औप० कालः। 1.3.3.2.1-2 ii.अद्धापल्योपम सागरोपमयोरसुरकुमारादिशेष दण्डकानामायु:स्थिति द्वारेण कथनम्। // 296 //