________________ श्रीअनुयोगद्वारंमलधारि | श्रीहेमचन्द्रसूरि वृत्तियुतम्। // 251 // सूत्रम् 336-338 1.3.2 क्षेत्रप्रमाणम्। |1.3.2.2.1 कुक्षिः। प्रत्येक कुक्षिद्वयनिष्पन्नास्तु षट् प्रमाणविशेषा दण्ड धनु युग नालिका ऽक्षमुशललक्षणा भवन्ति / तत्राक्षो धू:, [1] उपक्रमः। शेषाश्च गतार्थाः। द्वे धनुःसहस्रे गव्यूतम्, चत्वारि गव्यूतानि योजनम् // 335 // शा० उपक्रमः। 1.3 प्रमाणम्। __एएणं आयंगुलप्पमाणेणं किं पओयणं? एतेणं आयंगुलप्पमाणेण जेणं जया मणुस्सा भवंति तेसिणं तयाँ अप्पणो अंगुलेणं द्रव्यादिचतुर्भेदाः अगड दह नदी तलाग वावी पुक्खरणि दीहिया गुंजालियाओ सरा सरपंतिया) सरसरपंतियाओ बिलतियाओ आरामुजाण काणण वण वणसंड वणराईओ देवकुल सभा पवाथूभखाड्य परिहाओ पागार ऽट्टलग चरिय दार गोपुर तोरण पासादघर सरण लेण आवण सिंघाडग तिय चउक्क चच्चर चउमुह महापह पहा सगड रह जाण जुग्ग गिल्लि थिल्लि सीय संदमाणिय लोही लोहकडाह कडुच्छुय आसण सतण खंभ भंड मत्तोवगरणमादीणि अजकालिगाइंच जोयणाईमविखंति // सूत्रम् 336 // विभागनिष्पन्नसे समासओ तिविहे पण्णते / तंजहा-सूति अंगुले 1, पयरंगुले 2, घणंगुले 3 / अंगुलायता एगपदेसिया सेढी सूइअंगुले 1, आत्माङ्गुल सूयी सूयीए गुणिया पयरंगुले 2, पयरं सूईए गुणितं घणंगुले 3 // सूत्रम् 337 // कूपद्रहादिवस्तूएतेसि णं भंते! सूतिअंगुल पयरंगुल घणंगुलाण य कतरे कतरेहितो अप्पे वा बहुए वा तुल्ले वा विसेसाहिए वा? सव्वत्थोवे च योजनानि सूतिअंगुले, पतरंगुले असंखेज्जगुणे, घणंगुले असंखेजगुणे।सेतं आयंगुले // सूत्रम् 338 // एतेणं आयंगुलपमाणेणं किं पओयणमित्यादिगतार्थम् / नवरं ये यदा मनुष्या भवन्ति तेषां तदाऽऽत्मनोऽङ्गलेन स्वकीयकाल ह। तया णं आयंगुलेणं अगड तलाग दह नदी वावि पुक्खरिणी...0 देउल। 0 अट्टालय / G'तोरणे' ति पदं नास्ति। “लयण। ॐ तिग। ON // 251 // हO सिविअ संदमाणिआओ। कडिल्लय। ®इमानि त्रिणि पदानि न वर्तन्ते। ®या। ®सुई सूईगुणिया। ®'य' न वर्तते। 9 अप्पा वा बहुया 8 वा तुल्लावा विसेसाहिया वा। ®स्वकीये'त्यधिकम्। मङ्कलप्रमाणम्। |1.3.2.2.1.1 प्रयोजनम्, न्यद्यकालीनानि मीयन्ते तस्य सूचिप्रतरघनत्रयाभेदाः।