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________________ श्रीअनुयोगद्वारंमलधारि श्रीहेमचन्द्र सूरि वृत्ति [1] उपक्रमः / शा० उपक्रमः। 1.3 प्रमाणम्। द्रव्यादिचतुर्भेदाः सूत्रम् 330-335 युतम्। // 248 // से किं तं पदेसणिप्फण्णे? 2 एगपदेसोगाढे दुपदेसोगाढे जावसंखिज्जपदेसोगाढे, असंखिन्जपदेसोगाढे, सेतं पएसणिप्फण्णे ।सूत्रम् 331 // से किं तं विभागणिप्फण्णे? 2- अंगुल विहत्थि रयणी कुच्छी धणु गाउयं च बोद्धव्वं / जोयण सेढी पयरं लोगमलोगे विय तहेव ॥९५॥सूत्रम् 332 // से किं तं अंगुले? 2 तिविहे पण्णत्ते, तंजहा- आयंगुले 1 उस्सेहंगुले 2 पमाणंगुले 3 // सूत्रम् 333 // से किं तं आयंगुले?, 2 जे णं जया मणुस्सा भवंति तेसि णं तया अप्पणो अंगुलेणं दुवालसअंगुलाई मुहं, नवमुहाई पुरिसे पमाणजुत्ते भवति, दोणिए पुरिसे माणजुत्ते भवति, अद्धभारं तुलमाणे पुरिसे उम्माणजुत्ते भवति, माणु म्माण पमाणजुत्ता लक्खणवंजणगुणेहिं उववेया।उत्तमकुलप्पसूया उत्तमपुरिसा मुणेयव्वा // 96 // होंति पुण अहियपुरिसा अट्ठसतं अंगुलाण उव्विद्धा। गउति अहमपुरिसा चउरुत्तर मज्झिमिल्ला उ॥९७॥ हीणा वा अहिया वा जे खलु सर सत्त सारपरिहीणा। ते उत्तमपुरिसाणं अवसा पेसत्तणमुर्वेति॥९८॥ सूत्रम् 334 // एतेणं अंगुलपमाणेणं छ अंगुलाई पादो, दो पाया विहत्थी, दो विहत्थीओ रयणी, दो रयणीओ कुच्छी, दो कुच्छीओ दंडं, धणू, जुगे, नालिया, अक्ख मुसले, दो धणुसहस्साईगाउयं, चत्तारि गाउयाईजोयणं // सूत्रम् 335 // से किं तं खेत्तपमाणे, इत्यादि। इदमपि द्विविधम् (प्रदेशनिष्पन्नं विभागनिष्पन्नं च), तत्र प्रदेशा इह क्षेत्रस्य निर्विभागा 0'जाव' स्थाने 'तिपएसोगाढे'10 लोगऽविअ तहेव। 0 ण्णि। ल्ल। पमाणजुत्ता(णय),I 0 सयं। 7 चउत्तरं / स्स। 0 क्खे। क्षेत्रप्रमाणम्। 1.3.2.2 विभागनिष्पन्नम् अङ्गलवितस्तिरलिधन्वादि भेदाः। // 248 //
SR No.600442
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_anuyogdwar
File Size31 MB
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