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________________ [1] उपक्रमः। शा० उपक्रमः। |श्रीअनुयोगद्वारं मलधारि श्रीहेमचन्द्रसूरि वृत्ति 1.2 नाम। युतम्। // 220 // वचः, पश्यत भोः श्यामास्त्री यथा हसतीति सम्बन्धः / किं कुर्वती? देवरं प्रलोकयन्ती, कथम्भूतं? पासुत्तेत्यादि / छिन्नप्ररूढादिवदत्र कर्मधारयः / पूर्वं प्रसुप्तश्चासौ ततो मषीमण्डितश्चासौ ततोऽपि प्रबुद्धश्चस तथा तम्, कथम्भूता? स्तनभरकम्पनेन प्रणतं मध्यं यस्याः सा तथेति // 77 // अथ हेतुतो लक्षणतश्च करुणरसस्वरूपमाह (9) पियविप्पयोग बंध वह वाहि विणिवाय संभमुप्पन्नो / सोचिय विलविय पव्वाय रुन्नलिंगो रसो कलुणो॥७॥ कलुणो रसो जहा- पज्झातकिलामिययं बाहागयपप्पुयच्छियं बहुसो। तस्स वियोगे पुत्तय! दुब्बलयं ते मुहं जायं // 79 // पियविप्पओयगाहा। प्रियविप्रयोग बन्ध वध व्याधि विनिपात सम्भ्रमेभ्यः समुत्पन्नः करुणो रस इति योगः। तत्र विनिपातः सुतादिमरणम्, सम्भ्रमः परचक्रादिभयम्, शेषं प्रतीतम्। किंलक्षण इत्याह- शोचित विलपित प्रम्लान रुदितानि लिङ्गानि लक्षणानि यस्य स तथा। तत्र शोचितमानसो विकारः,शेषं विदितमिति // 78 // पज्झायेत्याधुदाहरणगाथा / अत्र प्रियविप्रयोगदमितां बालांप्रति वृद्धा काचिदाह- तस्य कस्यचित्प्रियतमस्य वियोगे हे पुत्रिके! दुर्बलकं ते मुखं जातम्, कथम्भूतं? पज्झायकिलामितयं ति, प्रध्यातं प्रियजनविषयमतिचिन्तितं तेन क्लान्तम् / बाहागयपप्पुतच्छयं ति, बाष्पस्यागतमागमनं तेनोपप्लुते व्याप्तेऽक्षिणी यत्र तत्तथा। बहुशोऽभीक्ष्णमिति // 79 // अथ हेतुलक्षणद्वारेणैव प्रशान्तरसमुदाहरति, (10) निहोसमणसमाहाणसंभवो जो पसंतभावेणं / अविकारलक्खणो सो रसो पसंतोत्ति णायव्वो॥८॥ पसंतोरसो जहा- सब्भावनिव्विकारं उवसंत पसंत सोमदिट्टीयं / ही! जह मुणिणो सोहति मुहकमलं पीवरसिरीयं // 81 // एए णव कव्वरसा बत्तीसादोसविहिसमुप्पण्णा / गाहाहि मणेयव्वा हवंति सुद्धा व मीसा वा // 82 // से तं नवनामे // सूत्रम् ®या हसतीति / Oम्हाण। 0 रु। 0 पुत्तिय। 7 भ्र। 0 अच्छियं / 7 गा। (c) मुणि / सूत्रम् 262 1.2.9 नवनाम। गा०७८-८१ 1.2.9.7-8 करुणप्रशान्तरसनिरूपणम्। गा०८२ 1.2.9.9 नवकाव्यरसोपसंहारम्। // 220 //
SR No.600442
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_anuyogdwar
File Size31 MB
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