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________________ शा० उपक्रमः श्रीअनुयोगद्वारंमलधारि श्रीहेमचन्द्रसूरि वृत्तियुतम्। // 211 // 1.2 नाम। 1.2.8 अष्टनाम। अष्टविधविभक्तिभेदै स्वरमण्डलस्याभिधानात्सप्तनामेदमुच्यते // 56 // से तं सत्तनामेत्ति निगमनम् / / 260 // अथाष्टनाम प्रतिपादयन्नाह [1] उपक्रमः। से किंतं अट्ठनामे? 2 अट्ठविहा वयणविभत्ती पण्णत्ता, तंजहा- निद्देसे पढमा होति 1, बितिया 2 उवदेसणे 3 / तइया करणंमि कया, चउत्थी संपयावणे 4 // 57 // पंचमी य अपायाणे 5, छट्ठी सस्सामिवायणे ६।सत्तमी सण्णिधाणत्थे 7, अट्ठमाऽऽमंतणी भवे 8 // 58 // सूत्रम् 261 तत्थ पढमा विभत्ती निद्देसे सो ड्रमो अहं वत्ति 1 / बितिया पुण उवदेसे भण कुणसु इमंवतं वत्ति 2 // 59 // ततिया करणंमि कया भणियं व कयं व तेण व मए वा 3 / हंदिणमो साहाए हवति चउत्थी पयाणंमि४॥६०॥ गा०५७-६२ अवणय गिण्ह य एत्तो इतो ति वा पंचमी अपायाणे 5 / छट्ठी तस्स इमस्स व गयस्स वा सामिसंबंधे 6 // 61 // निरूपणम्। हवति पुण सत्तमी तं इमंमि आधारकालभावे य७। आमंतणी भवे अट्ठमी उ जह हे जुवाण! त्ति 8 // 62 // से तं अट्ठणामे // सूत्रम् 261 // ( // 128 // ) से किंतं अट्ठनामे, इत्यादि। उच्यन्त इति वचनानि वस्तुवाचीनि। विभज्यते प्रकटीक्रियतेऽर्थोऽनयेति विभक्तिः।वचनानांक विभक्तिर्वचनविभक्तिः, नाख्यातविभक्तिरपि तु नामविभक्तिः प्रथमादिकेति भावः / सा चाष्टविधा तीर्थकरगणधरैः प्रज्ञप्ता। का पुनरियमित्याशय यस्मिन्नर्थे या विधीयते तत्सहितामष्टाविधामपि विभक्तिं दर्शयितुमाह- तद्यथेत्यादि / निद्देसे, इत्यादि श्लोकद्वयं निगदसिद्धम् / नवरं लिङ्गार्थमात्रप्रतिपादनं निर्देशस्तत्र सि, औ, जसिति प्रथमा विभक्तिर्भवति / अन्यतरक्रियायां प्रवर्तनेच्छोत्पादनमुपदेशस्तस्मिन्, अम्, औ, शस्, इति द्वितीया विभक्तिर्भवति / उपलक्षणमात्रंचेदं कटंकरोतीत्यादिषूपदेश®वा। हा। (c) च। 0 इउ। // 211 //
SR No.600442
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_anuyogdwar
File Size31 MB
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