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________________ [1] उपक्रमः। शा० उपक्रमः। श्रीअनुयोगद्वारंमलधारि श्रीहेमचन्द्रसूरि वृत्ति 1.2 नाम। युतम्। // 208 // (11) केसी गायती महुरं? केसी गायतीखरं च रुक्खं च? / केसी गायती चउरं? केसीय विलंबियं? दुतं केसी? विस्सरं पुण केरिसी?॥५४॥पंचपदी। सामा गायति महुरं काली गायइ खरंच रुक्खं च / गोरी गायति चउरंकाणा य विलंबियंदुतं अंधा विस्सरं पुण पिंगला॥५५॥ पंचपदी सत्तस्सरा तयोगामा, मुच्छणा एकवीसति / ताणा एगूणपण्णासंसम्मत्तंसरमंडलं॥५६॥से तंसत्तनामे।सूत्रम् 260 // a ( // 127 // ) षड् दोषा वर्जनीयास्तानाह- भीतगाहा। भीतमुत्त्रस्तमानसं यद्गीयत इत्येको दोषः 1 / द्रुतं त्वरितम् 2 / उप्पिछश्वासयुक्तं त्वरितंच, पाठान्तरेण रहस्संति हस्वस्वरं लघुशब्दमित्यर्थः३। उत्तालम्, उत्प्राबल्यार्थेऽतितालमस्थानतालंचेत्यर्थः / तालस्तु कंसिकादिशब्दविशेष:४। काकस्वरं श्लक्ष्णाश्रव्यस्वरम् 5 / अनुनासनासिकाकृतस्वरम् 6 / एते षड् दोषा गीतस्य भवन्ति॥४६४७॥ अष्टौ गुणानाह- पुण्णंगाहा / स्वरकलाभिः सर्वाभिरपि युक्तं कुर्वतः पूर्णम् 1 / गेयरागेण रक्तस्य भावितस्य, रक्तम् / अन्यान्यस्फुटशुभस्वरविशेषाणां करणादलङ्कतम् 3 / अक्षरस्वरस्फुटकरणाद्व्यक्तम् 4 / विक्रोशनमिव यद्विस्वरं न भवति तदविघुष्टम् 5 / मधुमत्तकोकिलारुतवन्मधुरस्वरं मधुरम् 6 / ताल वंशस्वरादिसमनुगतं समम् 7, स्वरघोलनाप्रकारेण सुष्टु, अतिशयेन ललतीव यत्सुकुमालं तत्सुललितम् 8, एतेऽष्टौ गुणा गीतस्य भवन्ति, एतद्विरहितं तु विडम्बनामात्रमेव तदिति // 48 // किं चोपलक्षणत्वादन्येऽपि गीतगुणा भवन्ति तानाह- उर गाहा / चकारो गेयगुणान्तरसमुच्चयार्थः / उर:कण्ठशिरोविशुद्धं च। ®गा० 55 स्थाने - " / गाथाऽधिकमिदं / गोरी गायति महुरं सामा गायइ खरं च रुक्खंच / काली गायइ चउरं काणा य विलंबिअंदुतं अंधा // 55 // विस्सरं पुण पिंगला / गाथाऽधिकमिदमपि।" इत्यादि वर्तते। 0 सरा। 1 / 0 साकृत। सूत्रम् 260 1.2.7 सप्तनाम। गा०४६-५६ गीतस्य षड्दोषा अष्टौ गुणाः सप्त स्वरा स्त्रिणि वृत्तानि द्वे भणित्यौ तथा मधुर खर रूक्ष चतुर विलम्बित द्रुत विस्वरगायिका निरूपणमुपसंहारश्च / // 208 //
SR No.600442
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_anuyogdwar
File Size31 MB
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