________________ [[1] उपक्रमः / शा० उपक्रमः। श्रीअनुयोगद्वारं मलधारि श्रीहेमचन्द्रसूरि वृत्तियुतम्। // 207 // |1.2 नाम। योनिकम्। पादसमा उच्छासाः, यावद्भिः समयैर्वृत्तस्य पादः समाप्यते तावत्समया उच्छ्वासा गीते भवन्तीत्यर्थः // 44 // आकारानाह- आइ गाहा। त्रयो गीतस्याकारा: स्वरूपविशेषलक्षणा भवन्तीति पर्यन्ते सम्बन्धः / किं कुर्वाणा इत्याह, आरंभन्तत्त्यारम्भमाणा गीतमिति गम्यते, कथम्भूतमित्याह- आइमउत्त्यादौ, प्रथमतो मृदु कोमलम्, आदिमृदु, तथा समुद्वहन्तश्च कुर्वन्तश्च महत्तां गीतध्वनिरिति गम्यते, मध्यकारे मध्यमभागे, तथावसाने च क्षपयन्तो, गीतध्वनि मन्द्रीकुर्वन्त इत्यर्थः। आदौ मृदु मध्ये तारं पर्यन्ते मन्द्रं गीतं कर्तव्यमत एते मृदुतादयस्त्रयो गीतस्याकरा भवन्तीति तात्पर्यम् // 45 // किन्तु छद्दोसे अट्टगुणे तिण्णि य वित्ताणि दोणि भणितीओ।जो णाही सो गाहिति, सुसिक्खितो रंगमज्झम्मि // 46 // भीयं दुयमुप्पिच्छं उत्तालं च कूमसो मुणेयव्वं / काकस्सरमणुनासं छद्दोसा होति गीयस्स॥४७॥ पुण्णंरत्तं च अलंकियं च वत्तं तहेवमविघुटुं। महुरं समं सुललियं अट्ठ गुणा होंति गीयस्स // 48 // उरकंठसिरविसुद्धंच गिज्जते मउय रिभियपदबद्धं / समताल पडुक्खेवं सत्तस्सरसीभरंगीयं // 49 // अक्खरसमं पयसमंतालसमंलयसमंच गहसमंच / नीस्ससिउस्ससिय समं संचारसमंसरा सत्त // 50 // निद्दोसंसारवंतंच, हेउजुत्तमलंकियं / उवणीयं सोवयारंच, मियं महुरमेव य // 51 // समं अद्धसमंचेव, सव्वत्थ विसमंच जं / तिण्णि वित्तप्पयाराई, चउत्थं नोवलब्भइ // 52 // सक्कया पाययाचेव, भणिईओ होंति दुण्णि उ।सरमंडलम्मि गिजंते, पसत्था इसिभासिया॥५३॥ 0 महतीं गीतध्वनिमिति। रुन्ति।। 0 वित्ताई दोय। 0 दुअंउप्पि....। 9 ग। (c) दो। 0 गेअस्स। ©चे'त्यधिकम्। 7 द। ®गे। (r) | निससिओससिअ...®मं। (r) ®दोणि वा। सूत्रम् 260 1.2.7 सप्तनाम। गा०४६-५६ गीतस्य षड्दोषा अष्टौ गुणा: सप्त स्वरा स्त्रिणि वृत्तानि द्वे भणित्यौ तथा मधुर खर रूक्ष चतुर विलम्बित द्रुत विस्वरगायिका निरूपणमुपसंहारश्च / // 207 //