________________ शा० उपक्रमः। श्रीअनुयोगद्वारं मलधारि श्रीहेमचन्द्रसूरि वृत्तियुतम्। // 147 // सूत्रम् 172-179 1.1.4 १.१.४आ.१ समया। दुगुणादुगुणपवित्थर दीवोदहि रज्जु एवइया॥१॥ (जिन० संग्र० गा० 80) इति गाथाप्रतिपादिता द्रष्टव्या। तदेवमत्र / [1] उपक्रमः। क्रमोपन्यासे पूर्वानुपूर्वी, व्यत्ययेन पश्चानुपूर्वी, अनानुपूर्वी त्वमीषामसङ्खयेयानां पदानां परस्पराभ्यासे येऽसङ्खयेया भङ्गा भवन्ति भङ्गकद्वयोनतत्स्वरूपा द्रष्टव्येति॥ 1.1 आनुपूर्वी। उद्दलोगखेत्ताणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता, तंजहा, पुव्वाणुपुव्वी 1 पच्छाणुपुव्वी 2 अणाणुपुव्वी ३॥सूत्रम् 172 // से किं तं पुव्वाणुपुव्वी? 2 सोहम्मे 1 ईसाणे 2 सणंकुमारे 3 माहिंदे 4 बंभलोए 5 लंतए 6 महासुक्के 7 सहस्सारे 8 आणते 9 पाणते 10 आरणे 11 अचुते 12 गेवेज्जविमाणा 13 अणुत्तरविमाणा 14 ईसिपब्भारा 15 से तंपुव्वाणुपुव्वी॥ सूत्रम् 173 // | क्षेत्रानुपूर्वी। से किं तं पच्छाणुपुव्वी? 2 ईसिपन्भारा 15 जाव सोहम्मे 1 से तं पच्छाणुपुव्वी // सूत्रम् 174 // सङ्घह० औ० से किं तं अणाणुपुव्वी? 2 एयाए चेव एगादिआए एगुत्तरियाए पण्णरसगच्छगयाए सेढीए अण्णमण्णब्भासो दुरूवूणो, से तं क्षेत्रानुपूर्वी। अणाणुपुव्वी // सूत्रम् 175 // उर्ध्वलोक क्षेत्रानुपूर्वी। अहवा ओवणिहिया खेत्ताणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता, तंजहा-पुव्वाणुपुव्वी 1 पच्छाणुपुव्वी 2 अणाणुपुव्वी॥सूत्रम् 176 / / i. पूर्वानुपूर्वी, से किं तं पुव्वाणुपुव्वी? 2 एगपएसोगाढे दुपएसोगाढे जाव दसपएसोगाढे असंखेज्जपएसोगाढे, से तं पुव्वाणुपुव्वी // सूत्रम् ii. पश्चानुपूर्वी, iii.अनानुपूर्वी। 177 // से किं तं पच्छाणुपुव्वी? 2 असंखेजपएसोगाढे जाव एगपएसोगाढे, से तं पच्छाणुपुव्वी // सूत्रम् 178 // B समयाः। द्विगुणद्विगुणप्रविस्तारा द्वीपोदधयो रज्ज्वामियन्तः॥१॥७ना।लणे। द्वादश देवलोका: ग्रैवेयका अनुत्तरा ईषत्प्राग्भारा च / संखिजपएसोगाढे' इत्यधिकम् / |१.१.४आ.१ // 147 //