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________________ श्रीअनुयोगद्वारं मलधारि श्रीहेमचन्द्रसूरि वृत्तियुतम्। // 140 // बिभणिषुराह [1] उपक्रमः। से किंतंसंगहस्स अणोवणिहिया खेत्ताणुपुवी? जहेव दव्वाणुपुव्वी तहेव खेत्ताणुपुव्वीणेयव्वा / सेतं संगहस्स अणोवणिहिया शा० उपक्रमः। खेत्ताणुपुव्वी। सेतं अणोवणिहिया खेत्ताणुपुव्वी॥सूत्रम् 159 // ( // 102 // ) |1.1 आनुपूर्वी। सूत्रम् 159 से किं तमित्यादि / इह सङ्ग्रहाभिमतद्रव्यानुपूर्व्यनुसारेण निखिलं भावनीयम्, नवरं क्षेत्रप्राधान्यादत्र तिपएसोगाढा आणुपुव्वी |1.1.4 जाव असंखेज्जपएसोगाढा आणुपुची एगपएसोगाढा अणाणुपुव्वी दुपएसोगाढा अवत्तव्वए, इत्यादि वक्तव्यम्, शेषं तथैवेति // 159 // क्षेत्रानुपूर्वी। १.१.४आ.२ सूत्र 159 स्थानेऽयं पाठो सूत्राङ्क 102 सहितो वर्तते-“से किं तं संगहस्स अणोवणिहिआ खेत्ताणुपुची?, 2 पंचविहा पण्णत्ता, तंजहा- अठ्ठपयरूवणया 8 सङ्ग्रह० अनौ० भंगसमुक्त्तिणया भंगोवदसणया समोआरे अणुगमे, से किं तं संगहस्स अट्ठपयरूवणया?, 2 तिपएसोगाढे आणुपुव्वी चउप्पएसोगाढे आणुपुव्वी जाव दसपएसोगाढे क्षेत्रानुपूर्वी। आणुपुवी संखिजपएसोगाढे आणुपुची असंखिजपएसोगाढे आणुपुन्वी एगपएसोगाढे अणाणुपुवी दुपएसोगाढे अवत्तव्वए, से तं संगहस्स अट्ठपयपरूवणया। एआए 8 इणं सगहस्स अट्ठपयपरूवणयाए किं पओअणं?, संगहस्स अट्ठपयपरूवणयाए संगहस्स भंगसमुक्त्तिणया कजइ। से किं तं संगहस्स भंगसमुक्त्तिणया?, अस्थि आणुपुल्वी अस्थि अणाणुपुव्वी अस्थि अवत्तव्वए, अहवा अस्थि आणुपुव्वी अ अणाणुपुची अ एवं जहा दव्वाणुपुब्बीए संगहस्स तहा भाणिअव्वं जाव से तं संगहस्स भंगसमुक्तित्तणया। एआए णं संगहस्स भंगसमुक्तित्तणयाए किं पओअणं?, एआए णं संगहस्स भंगसमुक्कित्तणयाए संगहस्स भंगोवदसणया कज्जइ। से किं तं संगहस्स भंगोवदंसणया?, 2 तिपएसोगाढे आणुपुव्वी एगपएसोगाढे अणाणुपुल्वी दुपएसोगाढे अवत्तव्वए अहवा तिपएसोगाढे अ एगपएसोगाढे अ आणुपुष्वी अ अणाणुपुव्वी अ एवं जहा दव्वाणुपुव्वीए संगहस्स तहा खेत्ताणुपुवीएवि भाणिअव्वं जाव से तं संगहस्स भंगोवदंसणया। से किं तं समोआरे?, 2 संगहस्स आणुपुव्वीदव्चाई कहिं समोअरंति? किं आणुपुव्वीदव्वेहिं समोअरंति अणाणुपुव्वीदव्वेहिं अवत्तव्वगदव्वेहिं?, तिण्णिवि सट्ठाणे समोअरंति, से तं समोआरे। से किं तं अणुगमे?, 2 अट्ठविहे // 140 // पण्णते, तंजहा- संतपयपरूवणया जाव अप्पाबहुं नत्थि॥ 11 // संगहस्स आणुपुव्वीदव्वाई किं अत्थि णत्थि?, नियमा अत्थि, एवं तिण्णिवि, सेसगदाराई जहा दव्वाणुपुब्बीए संगहस्स तहा खेत्ताणुपुव्वीएवि भाणिअब्वाई, जाव से तं अणुगमे। से तं संगहस्स अणोवणिहिआ खेत्ताणुपुब्बी। से तं अणावणिहिआ खेत्ताणुपुल्वी॥ सूत्रम् 102 // "
SR No.600442
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_anuyogdwar
File Size31 MB
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