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________________ श्रीदशवैकालिक श्रीहारिक वृत्तियुतम् अष्टममध्ययन आचारप्रणिधिः, सूत्रम् 29-40 क्रोधादीनामिहपरलोकापायाः। // 362 // व्याघ्रादिसमुत्थमतिसहेदेतत्सर्वमेव अव्यथितः अदीनमनाः सन् देहे दुःखं महाफलं संचिन्त्येति वाक्यशेषः। तथा च शरीरे सत्येतद्दुःखम्, शरीरं चासारम्, सम्यगतिसामानं च मोक्षफलमेवेदमिति सूत्रार्थः // 27 // किंच-'अत्थं ति सूत्रम्, अस्तं गत आदित्ये अस्तपर्वतं प्राप्ते अदर्शनीभूते वा पुरस्ताच्चानुद्गते प्रत्यूषस्यनुदित इत्यर्थः, आहारात्मकं 'सर्व' निरवशेषमाहारजातं मनसापि न प्रार्थयेत्, किमङ्ग पुनर्वाचा कर्मणा वेति सूत्रार्थः // 28 // अतिंतिणे अचवले, अप्पभासी मिआसणे। हविज्ज उअरे दंते, थोवं लळून खिसए।सूत्रम् 29 / / न बाहिरं परिभवे, अत्ताणं नसमुक्कसे।सुअलाभेन मजिजा, जच्चा तवस्सिबुद्धिए।सूत्रम् 30 // से जाणमजाणं वा, कट्ठ आहम्मिअंपयं। संवरे खिप्पमप्पाणं, बीअंतं न समायरे॥सूत्रम् 31 // अणायारं परक्कम्म, नेव गूहे न निण्हवे।सुई सया वियडभावे, असंसत्ते जिइंदिए। सूत्रम् 32 / / अमोहं वयणं कुज्जा, आयरिअस्स महप्पणो। तं परिगिज्झ वायाए, कम्मुणा उववायए॥सूत्रम् 33 // अधुवं जीविअंनच्चा, सिद्धिमग्गं विआणिआ। विणिअट्टिज भोगेसु, आउंपरिमिअप्पणो॥ सूत्रम् 34 // बलं थामंच पेहाए, सद्धामारुग्गमप्पणो। खित्तं कालं च विन्नाय, तहप्पाणं निजुंजए।सूत्रम् 35 // जरा जाव न पीडेई, वाही जावन वडई। जाविंदिआन हायंति, ताव धम्मंसमायरे। सूत्रम् 36 // कोहंमाणंच मायं च, लोभं च पाववडणं / वमे चत्तारि दोसे उ, इच्छंतो हिअमप्पणो।सूत्रम् 37 // कोहो पीइंपणासेइ, माणो विणयनासणो।माया मित्ताणि नासेइ, लोभो सव्वविणासणो॥सूत्रम् 38 // (r) नैषा व्याख्याकृन्मता। // 362 //
SR No.600441
Book TitleDashvaikalik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyakiritivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages466
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_dashvaikalik
File Size34 MB
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