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________________ श्रीदशवैकालिक श्रीहारि० वृत्तियुतम् // 359 // अष्टममध्ययनं आचारप्रणिधिः, सूत्रम् 17-28 उपाश्रयगोचरप्रवेशादिमाश्रित्यविधिः। धुवं च पडिलेहिज्जा, जोगसा पायकंबलं / सिज्जमुच्चारभूमिं च, संथारं अदुवाऽऽसणं। सूत्रम् 17 // उच्चारं पासवणं, खेलं सिंघाणजल्लिाफासुअंपडिलेहिता, परिठ्ठाविज संजए।। सूत्रम् 18 // पविसित्तु परागारं, पाणट्ठा भोअणस्स वा। जयं चिट्टे मिअंभासे, न य रूवेसु मणं करे। सूत्रम् 19 // बहुं सुणेहि कन्नेहिं, बहुं अच्छीहिं पिच्छइ / न य दिटुं सुअंसव्वं, भिक्खू अक्खाउमरिहइ / / सूत्रम् 20 // सुअंवा जइ वा दिटुं, न लविज्जोवघाइआन य केणइ उवाएणं, गिहिजोगं समायरे॥सूत्रम् 21 // निट्ठाणं रसनिजूढं,भद्दगं पावगंति वा / पुट्ठो वावि अपुट्ठोवा, लाभालाभं न निद्दिसे ॥सूत्रम् 22 // न य भोअणंमि गिद्धो, चरे उंछं अयंपिरो। अफासुअंन भुंजिजा, कीअमुद्देसिआहडं। सूत्रम् 23 // संनिहिं च न कुविजा, अणुमायपि संजए। मुहाजीवी असंबद्धे, हविज्ज जगनिस्सिए।।सूत्रम् 24 // लूहवित्ती सुसंतुट्टे, अप्पिच्छे सुहरे सिआ। आसुरत्तं न गच्छिज्जा, सुच्चा णं जिणसासणं॥सूत्रम् 25 / / कन्नसुक्खेहिं सद्देहि, पेम्मं नाभिनिवेसए। दारुणं कक्कसं फासं, कारण अहिआसए। सूत्रम् 26 // खुहं पिवासंदुस्सिजं, सीउण्हं अरई भयं / अहिआसे अव्वहिओ, देहदुक्खं महाफलं // सूत्रम् 27 // अत्थंगयंमि आइच्चे, पुरत्था अ अणुग्गए। आहारमइयं सव्वं, मणसाविण पत्थए।सूत्रम् 28 // तथा 'धुव'न्ति सूत्रम्, तथा ध्रुवं च नित्यं च यो यस्य काल उक्तोऽनागतः परिभोगे च तस्मिन् प्रत्युपेक्षेत सिद्धान्तविधिना योगे सति सति सामर्थ्य अन्यूनातिरिक्तम्, किंतदित्याह- पात्रकम्बलं पात्रग्रहणादलाबुदारुमयादिपरिग्रहः, कम्बलग्रहणादूर्णासूत्रमयपरिग्रहः, तथा शय्यां वसतिं द्विकालं त्रिकालं च उच्चारभुवं च अनापातवदादि स्थण्डिलं तथा संस्तारकं तृणमयादि // 359 //
SR No.600441
Book TitleDashvaikalik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyakiritivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages466
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_dashvaikalik
File Size34 MB
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