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________________ श्रीदशवैकालिक श्रीहारि० वृत्तियुतम् // 340 // सूत्रम् अलं पासायखंभाणं, तोरणाण गिहाण अ।फलिहऽग्गलनावाणं, अलं उदगदोणिणं / सूत्रम् 27 // सप्तममध्ययनं पीढए चंगबेरे (रा) अ, नंगले मइयं सिआ।जंतलट्ठीव नाभी वा, गंडिआ व अलं सिआ॥सूत्रम् 28 / / वाक्यशुद्धिः, आसणंसयणंजाणं, हुज्जा वा किंचुवस्सए / भूओवघाइणि भासं, नेवं भासिज्ज पन्नवं / / सूत्रम् 29 // 26-35 तहेव गंतुमुज्जाणं, पव्वयाणि वणाणि अ।रुक्खा महल्ल पेहाए, एवं भासिज्ज पन्नवं॥सूत्रम् 30 // उद्यानाद्य धिकृत्यजाइमंता इमे रुक्खा, दीहवट्टा महालया। पयायसाला विडिमा, वए दरिसणित्ति अ॥सूत्रम् 31 // वाग्विधिः। तहा फलाई पक्काई, पायखजाईनोवए। वेलोइयाइंटालाई, वेहिमाइ त्ति नो वए।सूत्रम् 32 // असंथडा इमे अंबा, बहुनिव्वडिमाफला। वइज बहुसंभूआ, भूअरूवत्ति वा पुणो॥सूत्रम् 33 // तहेवोसहिओ पक्काओ, नीलिआओ छवीइ ।लाइमा भजिमाउत्ति, पिहुखज्जत्ति नो वए। सूत्रम् 34 // रूढा बहुसंभूआ, थिरा ओसढावि अ।गम्भिआओ पसूआओ, संसाराउत्ति आलवे। सूत्रम् 35 // 'तहेव'त्ति सूत्रम्, 'तथैवे'ति पूर्ववत्, गत्वा उद्यानं जनक्रीडास्थानं तथा पर्वतान् प्रतीतान् गत्वा तथा वनानि च, तत्र वृक्षान् महतो महाप्रमाणान् प्रेक्ष्य दृष्ट्वा नैवं भाषेत प्रज्ञावान् साधुरिति सूत्रार्थः // 26 // किमित्याह-'अलं'ति सूत्रम्, अलं पर्याप्ता एते वृक्षाः प्रासादस्तम्भयोः, अत्रैकस्तम्भः प्रासादः, स्तम्भस्तु स्तम्भ एव, तयोरलम्, तथा तोरणानां नगरतोरणादीनां गृहाणां चल कुटीरकादीनाम्, अलमिति योगः, तथा परिघार्गला नावां वा तत्र नगरद्वारे परिघः गोपुरकपाटादिष्वर्गला नौः प्रतीतेति आसामलमेते वृक्षाः,तथा उदकद्रोणीनां अलम्, उदकद्रोण्योऽरहट्टजलधारिका इति सूत्रार्थः॥२७॥ तथा पीढए त्ति सूत्रम्, ०'अलं निवारणे / अलङ्करणसामर्थ्यपर्याप्तिष्ववधारणे' इत्युक्तेः अलमिति पर्याप्त्यर्थग्रहणमित्युक्तेश्चात्र सामर्थ्यार्थग्रहणान्न चतुर्थी। // 340 //
SR No.600441
Book TitleDashvaikalik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyakiritivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages466
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_dashvaikalik
File Size34 MB
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