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________________ श्रीदशवैकालिक श्रीहारिक वृत्तियुतम् // 336 // सप्तममध्ययनं वाक्यशुद्धिः, सूत्रम् 11-20 पुरुषादिमाश्रित्यालपनप्रतिषेधः। निर्दिशेत, अन्ये पठन्ति-'स्तोकस्तोक'मिति, तत्र परिमितया वाचा निर्दिशेदिति सूत्रार्थः॥१०॥ तहेव फरुसा भासा, गुरुभूओवघाइणी। सच्चावि सा न वत्तव्वा, जओ पावस्स आगमो॥सूत्रम् 11 // तहेव काणं काणत्ति, पंडगं पंडगत्ति वा / वाहिवावि रोगित्ति, तेणं चोरत्ति नो वए। सूत्रम् 12 // एएणऽन्नेण अटेणं, परो जेणुवहम्मइ। आयारभावदोसन्नू, नतंभासिज्ज पन्नवं / / सूत्रम् 13 / / तहेव होले गोलित्ति, साणे वा वसुलित्ति / दमए दुहए वावि, नेवं भासिज्ज पन्नवं॥सूत्रम् 14 // अज्जिए पन्जिए वावि, अम्मो माउसिअत्ति अ। पिउस्सिए भायणिज्जत्ति, धूए णत्तुणिअत्ति अ॥सूत्रम् 15 // हले हलित्ति अन्नित्ति, भट्टे सामिणि गोमिणि / होले गोले वसुलित्ति, इत्थिनेवमालवे॥सूत्रम् 16 // नामधि ण णं बूआ, इत्थीगुत्तेण वा पुणो / जहारिहमभिगिज्झ, आलविज लविज वा // सूत्रम् 17 // अज्जए पजए वावि, बप्पो चुल्लपिउत्ति अ। माउलो भाइणिज्ज त्ति, पुत्ते णत्तुणिअत्ति अ॥सूत्रम् 18 // हे भो हलित्ति अन्नित्ति, भट्टे सामिअगोमि।होल गोल वसुलि त्ति, पुरिसं नेवमालवे ॥सूत्रम् 19 // नामधिज्जेणणं बूआ, पुरिसगुत्तेण वा पुणो। जहारिहमभिगिज्झ, आलविज लविज्ज वा॥सूत्रम् 20 // 'तहेव'त्ति सूत्रम्, तथैव परुषा भाषा निष्ठुरा भावस्नेहरहिता गुरुभूतोपघातिनी महाभूतोपघातवती, यथा कश्चित्कस्यचित् कुलपुत्रत्वेन प्रतीतस्तदा तं दासमित्यभिदधतः, सर्वथा सत्यापि सा बाह्यार्था तथाभावमङ्गीकृत्य न वक्तव्या, यतो यस्या भाषायाः सकाशात् पापस्यागमः अकुशलबन्धो भवतीति सूत्रार्थः // 11 // तहेव'त्ति सूत्रम्, तथैवेति पूर्ववत्, काणं ति भिन्नाक्षं काण इति, तथा पण्डकं नपुंसकं पण्डक इति वा, व्याधिमन्तं वापि रोगीति, स्तेनं चौर इति नो वदेत्, अप्रीतिलज्जा
SR No.600441
Book TitleDashvaikalik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyakiritivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages466
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_dashvaikalik
File Size34 MB
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