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________________ श्रीदशवैकालिक श्रीहारि० वृत्तियुतम् / / 247 // वा, किमित्याह- हस्ते वा पादे वा बाहौ वा ऊरुणि वा उदरे वा वस्त्रे वा रजोहरणे वा गुच्छे वा उन्दके वा दण्डके वा पीठे वा फलके चतुर्थमध्ययनं वा शय्यायां वा संस्तारके वा अन्यतरस्मिन् वा तथाप्रकारे साधुक्रियोपयोगिनि उपकरणजाते कीटादिरूपं त्रसं कथञ्चिदापतितं षड्जीव 8 निकायम्, सन्तं संयत एव सन् प्रयत्नेन वा प्रत्युपेक्ष्य प्रत्युपेक्ष्य-पौन:पुन्येन सम्यक् प्रमृज्य प्रमृज्य-पौनःपुन्येनैव सम्यक्, किमित्याह सूत्रगाथा एकान्ते तस्यानुपघातके स्थाने अपनयेत् परित्यजेत्, नैनं त्रसं संघातमापादयेत् नैनं त्रसंसंघातं- परस्परगात्रसंस्पर्शपीडारूपमा- 1-9 अयतस्य पादयेत्-प्रापयेत्, अनेन परितापनादिप्रतिषेध उक्तोवेदितव्यः, एकग्रहणे तज्जातीयग्रहणाद् अन्यकारणानुमतिप्रतिषेधश्च,शेषमत्र कर्मबन्धः। प्रकटार्थमेव, नवरमुन्दकं-स्थण्डिलम्, शय्या-संस्तारिका वसतिर्वा / इत्युक्ता यतना, गतश्चतुर्थोऽर्थाधिकारः॥ अजयं चरमाणो अ (उ), पाणभूयाइं हिंसइ / बंधई पावयं कम्म, तं से होइ कडुअंफलं // 1 // अजयं चिट्ठमाणो अ, पाणभूयाइं हिंसइ / बंधई पावयं कम्म, तं से होइ कडुअंफलं // 2 // अजयं आसमाणो अ, पाणभूयाइं हिंसइ / बंधई पावयं कम्म, तंसे होइ कडुअंफलं / / 3 / / अजयं सयमाणो अ, पाणभूयाई हिंसइ। बंधई पावयं कम्म, तं से होइ कडुअंफलं // 4 // अजयं भुंजमाणो अ, पाणभूयाइं हिंसइ / बंधई पावयं कम्म, तं से होइ कडुअंफलं // 5 // अजयं भासमाणो अ, पाणभूयाई हिंसइ / बंधई पावयं कम्म, तं से होइ कडुअंफलं॥६॥ कहं चरे कहं चिढ़े, कहमासे कहं सए। कहं भुजतो भासंतो, पावं कम्मं न बंधइ? // 7 // जयं चरे जयं चिट्टे, जयमासे जयंसए। जयं भुंजंतो भासंतो, पावं कम्मं न बंधइ॥८॥ सव्वभूयप्पभूअस्स, सम्मं भूयाईपासओ। पिहिआसवस्स दंतस्स, पावं कम्मन बंधइ॥९॥ // 247 //
SR No.600441
Book TitleDashvaikalik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyakiritivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages466
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_dashvaikalik
File Size34 MB
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