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________________ श्रीसमवायाङ्गं श्रीअभय० वृत्तियुतम् // 58 // सूत्रम् 17 17 समवाय: असंयमादिः करिस्संति // सूत्रम् 17 // ___ अथ सप्तदशस्थानकम्, तच्च व्यक्तम् , नवरमिह स्थितिसूत्रेभ्योऽन्यानि दश, तथा अजीवकायासंयमो- विकटसुवर्ण बहुमूल्यवस्त्रपात्रपुस्तकादिग्रहणम्, प्रेक्षायामसंयमो यः स तथा, स च स्थानोपकरणादीनामप्रत्युपेक्षणमविधिप्रत्युपेक्षणं वा, उपेक्षाऽसंयमोऽसंयमयोगेषु व्यापारणं संयमयोगेष्वव्यापारणं वा, तथा अपहृत्यासंयमः अविधिनोच्चारादीनां परिष्ठापनतो यः, तथा अप्रमार्जनाऽसंयमः- पात्रादेरप्रमार्जनयाऽविधिप्रमार्जनया वेति, मनोवाक्कायानामसंयमास्तेषामकुशलानामुदीरणानीति। असंयमविपरीतः संयमः / वेलन्धरानुवेलन्धरावासपर्वतस्वरूपं क्षेत्रसमासगाथाभिरवगन्तव्यम्, एताश्चैताः-दस जोयणसहस्सा लवणसिहा चक्कवालओ रुंदा / सोलससहस्स उच्चा सहस्समेगंतु ओगाढा // 1 // देसूणमद्धजोयण लवणसिहोवरि दगं तु कालदुगे / अतिरेगं 2 परिवड्डइ हायए वावि // 2 // अब्भंतरियं वेलं धरति लवणोदहिस्स नागाणं / बायालीससहस्सा दुसत्तरि सहस्स बाहिरियं // 3 // सहि नागसहस्सा धरेंति अग्गोदगं समुद्दस्स / वेलंधर आवासा लवणे य चउद्दिसिं चउरो // 4 // पुव्वादि अणुक्कमसो गोथुभ 1 दगभास 2 संख 3 दगसीमा 4 / गोथुभे 1 सिवए 2 संखे 3 मणोसिले 4 नागरायाणो॥५॥ अणुवेलंधरवासा लवणे विदिसासु संठिआ चउरो। 0.भ्योऽर्वाग (मु०)10 यः स तथा, (प्र०)10 दशयोजनसहस्राणि लवणशिखा चक्रवालतो विस्तीर्णा / षोडशसहस्रोच्चा सहस्रमेकं त्वगाढा / / 1 / / देशोनार्धयोजनं लवणशिखोपरि दकंतु कालद्विके। अतिरेकमतिरेकं परिवर्धते हीयते वाऽपि // 2 // अभ्यन्तरां वेलां धारयन्ति लवणोदधेर्नागानाम् / द्वाचत्वारिंशत्सहस्राणि द्विसप्ततिः सहस्राणि बाह्याम् / / 3 / / षष्टि नागसहस्राणि धारयति अग्रे दकं समुद्रस्य / वेलन्धराणामावासाः लवणे चतसृषु दिक्षु चत्वारः // 4 // पूर्वाद्यनुक्रमतो गोस्तूभदकभासशङ्खदकसीमानः / गोस्तूभशिवशङ्खमनःशिला नागराजाः // 5 // अनुवेलन्धरावासा लवणे विदिक्षु चत्वारः संस्थिताः। पुवदिसा (मु०)। // 58 //
SR No.600440
Book TitleSamvayang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyakiritivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_samvayang
File Size20 MB
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