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________________ सूत्रम् 148 श्रीसमवायाङ्गं श्रीअभय० वृत्तियुतम् // 231 // विराधना ऽऽराधना ऋषभाजिततीर्थकरान्तरे तद्वंशजभूपतीनांशेषगतिगमनव्युदासेन शिवगमनानुत्तरोपपातप्राप्तिप्रतिपादिकाश्चित्रान्तरगण्डिका इति, ताश्च चोद्दसलक्खा सिद्धा निवईणेक्को य होइ सवढे / एवेक्केक्कट्ठाणे पुरिसजुगा हुंतऽसंखेज्जा ॥१॥इत्यादिना ग्रन्थेन नन्दिटीकायामभिहितास्तत एवावधार्याः, इह सूत्रगमनिकामात्रस्य विवक्षितत्वादिति, शेषं सूत्रसिद्धमा निगमनात्, नवरं संखेज्जा वत्थु / त्ति पञ्चविंशत्युत्तरे द्वेशते संखेज्जा चूलवत्थुत्ति चतुस्त्रिंशत् // 12 // // 147 ॥साम्प्रतं द्वादशाङ्गे विराधनानिष्पन्नं त्रैकालिकं फलमुपदर्शयन्नाह इच्चेइयं दुगवालसंगंगणिपिडगं अतीतकाले अणंता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरंतसंसारकंतारं अणुपरियटिसुइच्चेइयंदुवालसंगं गणिपिडगंपडुप्पण्णे काले परित्ता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरंतसंसारकंतारं अणुपरियटुंति इच्चेइयंदुवालसंगंगणिपिडगं अणागए काले अणता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरंतसंसारकंतारं अणुपरियट्टिस्संति, इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं अतीतकाले अणता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरंतसंसारकंतारं वीईवइंसु एवं पडुप्पण्णेऽवि एवं अणागएवि, दुवालसंगे णं गणिपिडगे ण कयावि णत्थि ण कयाइ णासीण कयाइ ण भविस्सइ भुविंच भवति य भविस्सति य धुवे णितिए सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए णिच्चे से जहाणामए पंच अत्थिकाया ण कयाइण आसि ण कयाइ णत्थि ण कयाइण भविस्सति भुविं च भवति य भविस्सति य धुवा णितिया सासया अक्खया अव्वया अवट्ठिया णिच्चा एवामेव दुवालसंगे गणिपिडगेण कयाइण आसिण कयाइ णत्थिण कयाइ भविस्सइ भुविं च भवति य भविस्सइ य धुवे जाव अवट्ठिए णिच्चे, एत्थ णं दुवालसंगे गणिपिडगे अणंता भावा अणंता अभावा अणंता हेऊ अणंता अहेऊ अणता कारणा अणंता अकारणा अणंता जीवा अणंता अजीवा अणंता भवसिद्धिया अणंता अभवसिद्धिया अणंता सिद्धा अणंताअसिद्धाआघविजंति पण्णविनंति परूविजंति दंसिज्जति निदंसिखंति उवदंसिज्जंति,एवंदुवालसंगं
SR No.600440
Book TitleSamvayang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyakiritivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_samvayang
File Size20 MB
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