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________________ श्रीसमवायाङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् // 226 // सूत्रम् 147 द्वादशाङ्गम् दृष्टिवादः तीसा वीसा पन्नरस अणुप्पवायंमि॥१॥बारस एक्कारसमे बारसमे तेरसेव वत्थूणि / तीसा पुण तेरसमे चउदसमे पन्नवीसाओ॥२॥ चत्तारि दुवालस अट्ठचेव दस चेव चूलवत्थूणि / आतिल्लाण चउण्हं सेसाणं चूलियाणत्थि ॥३॥सेतंपुव्वगयं, से किंतं अणुओगे? अणुओगे दुविहे पन्नत्ते, तंजहा- मूलपढमाणुओगे य गंडियाणुओगे य, से किंतं मूलपढमाणुओगे?, एत्थ णं अरहंताणं भगवंताणं पुव्वभवा देवलोगगमणाणि आउं चवणाणि जम्मणाणि अ अभिसेया रायवरसिरीओ सीयाओ पव्वजाओ तवा य भत्ता केवलणाणुप्पाया अतित्थपवत्तणाणि असंघयणं संठाणं उच्चत्तं आउं वनविभागोसीसा गणा गणहरा य अजा पवत्तणीओ संघस्स चउव्विहस्सजवावि परिमाणं जिणमणपज्जवओहिनाणसम्मत्तसुयनाणिणोय वाई अणुत्तरगई य जत्तिया सिद्धा पाओवगआयजे जहिं जत्तियाई भत्ताई छेअइत्ता अंतगडा मुणिवरुत्तमा तमरओघविप्पमुक्ता सिद्धिपहमणुत्तरं च पत्ता, एए अन्ने य एवमाइया भावा मूलपढमाणुओगे कहिआ आघविखंति पण्णविजंति परू० से तं मूलपढमाणुओगे, से किं तं गंडियाणुओगे?, अणेगविहे पण्णत्ते, तंजहा- कुलगरगंडियाओ तित्थगरगंडियाओ गणहरगंडियाओ चक्कहरगंडियाओ दसारगंडियाओ बलदेवगंडियाओ वासुदेवगंडियाओहरिवंसगंडियाओ भद्दबाहुगंडियाओतवोकम्मगंडियाओ चित्तंतरगंडियाओ उस्सप्पिणीगंडियाओ ओसप्पिणीगंडियाओ अमरनरतिरियनिरयगइगमणविविहपरियट्टणाणुओगे, एवमाइयाओ गंडियाओ आघविजंति पण्णविजंति परूविजंति, से तं गंडियाणुओगे, से किंतंचूलियाओ?,जण्णं आइल्लाणं चउण्हं पुव्वाणं चूलियाओ, सेसाई पुव्वाइं अचूलियाई, सेतंचूलियाओ, दिट्ठिवायस्सणंपरित्ता वायणा संखेजा अणुओगदारा संखेज्जाओपडिवत्तीओसंखेज्जाओ निजुत्तीओ संखेजा सिलोगाा संखेजाओ संगहणीओ, सेणं अंगट्ठयाए बारसमे अंगे एगे सुयखंधे चउद्दस पुव्वाइं संखेज्जा वत्थूसंखेजा चूलवत्थू संखेजा पाहुडा संखेज्जा पाहुडपाहुडा संखेजाओपाहुडियाओसंखेजाओपाहुडपाहुडियाओसंखेजाणि पयसयसहस्साणि पयग्गेणंपन्नत्ता, संखेज्जा अक्खरा // 226 //
SR No.600440
Book TitleSamvayang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyakiritivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_samvayang
File Size20 MB
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