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________________ श्रीअभय वृत्तियुतम् // 177 // अवतंसकाश्च प्रासादानां वा मध्ये अवतंसकाःप्रासादावतंसकाः // 250 // सूत्रम् 104 सुमई णं अरहा तिण्णि धणुसयाई उई उच्चत्तेणं होत्था,अरिट्ठनेमीणं अरहा तिण्णि वाससयाई कुमारवासमज्झे वसित्ता मुंडे शताधिक स्थानकम् भवित्ता जाव पव्वइए, वेमाणियाणं देवाणं विमाणपागारा तिण्णि तिण्णि जोयणसयाई उई उच्चत्तेणं प०, समणस्स भगवओ चन्द्रप्रभा:महावीरस्स तिन्निसयाणि चोहसपुव्वीणं होत्था, पंचधणुसइयस्सणं अंतिमसारीरियस्स सिद्धिगयस्ससातिरेगाणि तिण्णि धणुसयाणि द्युत्वादिः सूत्रम् 105 जीवप्पदेसोगाहणा प०॥३००॥॥सूत्रम् 104 // शताधिक स्थानकम् पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स अद्भुट्ठसयाईचोद्दसपुव्वीणं संपया होत्था, अभिनंदणे णं अरहा अधुट्ठाइंधणुसयाई उर्ल्ड पार्श्वउच्चत्तेणं होत्था / / 350 // // सूत्रम् 105 // चतुर्दश पूर्व्यभिनन्दतथा पंचधणुस्सइयस्स ण मित्यादि, पञ्चधनुःशतप्रमाणस्य अंतिमसारीरियस्स त्ति चरमशरीरस्य सिद्धिगतस्य सातिरेकाणि नोच्चत्वे त्रीणि शतानि धनुषां जीवप्रदेशावगाहना प्रज्ञप्ता, यतोऽसौ शैलेशीकरणसमये शरीररन्ध्रपूरणेन देहविभागं विमुच्य घनप्रदेशो सूत्रम् 106 शताधिकभूत्वा देहविभागद्वयावगाहनः सिद्धिमुपगच्छति, सातिरेकत्वं चैवं तिन्नि सया तेत्तीसा धणुत्तिभागो य होइ बोद्धव्वो। एसा खलु। सिद्धाणं उक्कोसोगाहणा भणिय // 1 // (आव० नि० 971) त्ति // 300 // // 350 // संभवेणं अरहा चत्तारि धणुसयाई उई उच्चत्तेणं होत्था, सव्वेविणं णिसढनीलवंता वासहरपव्वया चत्तारि चत्तारि जोयणसयाई उर्ल्ड उच्चत्तेणं चत्तारि चत्तारि गाउयसयाई उव्वेहेणंप०, सव्वेविणंवक्खारपव्वया णिसढनीलवंतवासहरपव्वयं तेणं चत्तारि चत्तारि जोयणसयाई उद्धं उच्चत्तेणंचत्तारि चत्तारिगाउयसयाई उव्वेहेणंप०, आणयपाणएसु दोसुकप्पेसुचत्तारि विमाणसया प०, समणस्स 0 त्रीणि शतानि त्रयस्त्रिंशद् धनूंषि त्रिभागश्च भवति बोद्धव्यः / एषा खलु सिद्धानामुत्कृष्टावगाहना भणिता // 1 // स्थानकम् |संभवोचत्वादि // 177 //
SR No.600440
Book TitleSamvayang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyakiritivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_samvayang
File Size20 MB
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