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________________ श्रीसमवायाङ्गं श्रीअभय० वृत्तियुतम् // 145 // सूत्रम् 72 72 समवायः सुवर्णकुमारावासादिः महावीरे बावत्तरि वासाइंसव्वाउयंपालइत्ता सिद्धे बुद्धे जावप्पहीणे, थेरेणं अयलभाया बावत्तरि वासाइंसव्वाउयं पालइत्ता सिद्ध जावप्पहीणे, अन्भिंतरपुक्खरद्धेणं बावत्तरिचंदा पभासिंसु 3 बावत्तरिं सूरिया तविंसुवा 3, एगमेगस्सणं रन्नो चाउरंतचक्कवट्टिस्स बावत्तरिपुरवरसाहस्सीओप०, बावत्तरि कलाओप० तं०- लेहंगणियं 2 रूवं 3 नटुं४ गीयं 5 वाइयं ६सरगयं 7 पुक्खरगयं 8 समतालं 9 जूयं 10 जणवायं 11 पोक्खच्चं 12 अट्ठावयं 13 दगमट्टियं 14 अन्नविहीं 15 पाणविहीं 16 वत्थविहीं 17 सयणविहीं 18 अखं 19 पहेलियं 20 मागहियं 21 गाहं 22 सिलोगं २३गंधजुत्तिं २४मधुसित्थं 25 आभरणविहीं 26 तरुणीपडिकम्मं 27 इत्थीलक्खणं 28 पुरिसलक्खणं 29 हयलक्खणं 30 गयलक्खणं 31 गोणलक्खणं 32 कुक्कुडलक्खणं 33 मिंढयलक्खणं 34 चक्कलखणं 35 छत्तलक्खणं 36 दंडलक्खणं 37 असिलक्खणं 38 मणिलक्खणं 39 कागणिलक्खणं 40 चम्मलक्खणं 41 चंदलक्खणं 42 सूरचरियं 43 राहुचरियं 44 गहचरियं 45 सोभागकरं 46 दोभागकर 47 विजागय 48 मंतगयं 49 रहस्सगयं 50 सभासं५१चारं 52 पडिचारं५३ वूहं 54 पडिवूहं 55 खंधावारमाणं५६ नगरमाणं५७ वत्थुमाणं५८खंधावारनिवेसं ५९वत्थुनिवेसं 60 नगरनिवेसं 61 ईसत्थं 62 छरुप्पवायं 63 आससिक्खं६४ हस्थिसिक्खं ६५धणुव्वेयं 66 हिरण्णपागंसुवन्न० मणिपागंधातुपागं 67 बाहुजुद्धं दंडजुद्धं मुट्ठिजुद्धं अट्ठिजुद्धं जुद्धं निजुद्धं जुद्धाइं जुद्धं सुत्तखेडं 68 नालियाखेडं वट्टखेडं धम्मखेडं चम्मखेडं 69 पत्तछेलं कडगच्छेनं 70 सजीवं निजीवं७१सउणरुयं७२ समुच्छिमखहयरपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं उक्कोसेणंबावत्तरिंवाससहस्साई ठिई प०॥ सूत्रम् 72 // अथ द्विसप्ततिस्थानके किमपि लिख्यते-सुपर्णकुमाराणां द्विसप्ततिर्लक्षाणि भवनानि, कथं?, दक्षिणनिकाये अष्टत्रिंशदुत्तरनिकाये तु चतुस्त्रिंशदिति, नागसाहस्सीओ त्ति नागकुमारदेवसहस्राणि वेलां- षोडशसहस्रप्रमाणामुत्सेधतो विष्कम्भतश्च // 145 //
SR No.600440
Book TitleSamvayang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyakiritivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_samvayang
File Size20 MB
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