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________________ श्रीसमवाया श्रीअभय० वृत्तियुतम् // 117 // सूत्रम् 41 ४१समवायः नेम्यार्यादिः सूत्रम् 42 ४२समवायः वीरश्रामण्याति रयणप्पभाएपंकप्पभाए तमाए तमतमाए, महालियाएणं विमाणपविभत्तीए पढमेवग्गे एकचत्तालीसं उद्देसणकालाप०॥सूत्रम् 41 // एकचत्वारिंशत्स्थानकं सुगमम्, नवरं चउसु इत्यादिक्रमेण सूत्रोक्तासु चतसृषु प्रथमचतुर्थषष्ठसप्तमीषु पृथिवीषु त्रिंशतो दशानां च नरकलक्षाणां पञ्चोनस्य चैकस्य पञ्चानां च नरकाणां भावाद्यथोक्तसंख्यास्ते भवन्तीति // 41 // समणे भगवं महावीरे बायालीसं वासाइं साहियाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता सिद्धे जाव सव्वदुक्खप्पहीणे, जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स पुरच्छिमिल्लाओचरमंताओ गोथूभस्सणं आवासपव्वयस्स पञ्चच्छिमिल्ले चरमंते एसणं बायालीसंजोयणसहस्साइंसंखे दयसीमे य, कालोएणं समुद्दे बायालीसंचंदाजोइंसुवाजोइंति वा जोइस्संति वा, बायालीसं सूरिया पभासिसुवा 3, संमुच्छिमभुयपरिसप्पाणं उक्कोसेणं बायालीसं वाससहस्साई ठिई प०, नामकम्मे बायालीसविहे प०, तं०- गइनामे जाइनामे सरीरनामे सरीरंगोवंगनामे सरीरबंधणनामे सरीरसंघायणनामे संघयणनामे संठाणनामे वण्णनामे गंधनामे रसनामे फासनामे अगुरुलहुयनामे उवघायनामे पराघायनामे आणुपुव्वीनामे उस्सासनामे आयवनामे उज्जोयनामे विहगगइनामे तसनामे थावरनामे सुहुमनामे बायरनामे पज्जत्तनामे अपज्जत्तनामे साहारणसरीरनामे पत्तेयसरीरनामे थिरनामे अथिरनामे सुभनामे असुभनामे सुभगनामे दुब्भगनामे सुसरनामे दुस्सरनामे आएजनामे अणाएजनामे जसोकित्तिनामे अजसोकित्तिनामे निम्माणनामे तित्थकरनामे, लवणे णं समुद्दे बायालीसं नागसाहस्सीओ अभिंतरियं वेलं धारंति, महालियाएणं विमाणपविभत्तीए बितिए वग्गे बायालीसं उद्देसणकालाप०, एगमेगाए ओसप्पिणीएपंचमछट्ठीओसमाओबायालीसंवाससहस्साइंकालेणंप०, एगमेगाए उस्सप्पिणीए पढमबीयाओसमाओबायालीसं वाससहस्साईकालेणंप०॥सूत्रम् 42 // द्विचत्वारिंशत्स्थानकं व्यक्तमेव, नवरं बायालीसंति छद्मस्थपर्याये द्वादश वर्षाणि षण्मासा अर्द्धमासश्चेति केवलिपर्यायस्तु // 117 //
SR No.600440
Book TitleSamvayang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyakiritivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_samvayang
File Size20 MB
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