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________________ 5. पञ्चममध्ययनं कायोत्सर्गः, श्रीआवश्यक नियुक्तिभाष्यश्रीहारिक वृत्तियुतम् भाग-४ // 1404 // नियुक्तिः नि०- देसिय राइय पक्खिय चउमासे या तहेव वरिसे य / एएसु हुंति नियया उस्सग्गा अनिअया सेसा // 1529 // नि०- साय सयं गोसऽद्धं तिन्नेव सया हवंति पक्खंमि। पंच य चाउम्मासे अट्ठसहस्संच वारिसए // 1530 / / नि०- चत्तारि दो दुवालस वीसं चत्ता य हुंति उज्जोआ। देसिय राइय पक्खिय चाउम्मासे अवरिसे य॥१५३१॥ नि०- पणवीसमद्धतेरस सिलोग पन्नत्तरं च बोद्धव्वा / सयमेगंपणवीसंबे बावन्ना यवारिसिए॥१५३२॥ निगदसिद्धाः, नवरं शेषा- गमनादिविषया इति, साम्प्रतं नियतकायोत्सर्गाणामोघत उच्छ्रासमानं प्रतिपादयन्नाह- साय त्ति सायं-प्रदोषः तत्रशतमुच्छासानां भवति, चतुर्भिरुद्योतकरैरिति, भावित एवायमर्थःप्राक्, गोसद्धं ति प्रत्यूषे पञ्चाशद्यतस्तत्रोद्योतकरद्वयं भवति, शेषं प्रकटार्थमिति गाथार्थः // 1530 // उच्छासमानंचोपरिष्टावक्ष्यामः पायसमा उस्सासा इत्यादिना। साम्प्रतं दैवसिकादिषद्योतकरमानमभिधित्सुराह- चत्तारि तिगाहा भावितार्था // 1531 // अधुना श्लोकमानमुपदर्शयन्नाहपणवीसे तिगाहा निगदसिद्धैव, नवरं चतुर्भिरुच्छ्रासैः श्लोकः परिगृह्यते॥१५३२॥ इत्युक्ता नियतकायोत्सर्गवक्तव्यता, इदानीमनियतकायोत्सर्गवक्तव्यतावसरः, तत्रेयं गाथा नि०-गमणागमणविहारे सुत्ते वा सुमिणदंसणे राओ। नावानइसंतारे इरियावहियापडिक्कमणं // 1533 // भा०- भत्ते पाणे सयणासणे य अरिहंतसमणसिज्जासु / उच्चारे पासवणे पणवीसं हुंति उस्सासा॥२३६ // द्वारम् / / (234) नियआलयाओगमणं अन्नत्थ उ सुत्तपोरिसिनिमित्तं / होइ विहारो इत्थविपणवीसं हुंति ऊसासा॥१॥ (प्र०) नि०- उद्देससमुद्देसे सत्तावीसं अणुन्नवणियाए। अट्ठेव य ऊसासा पट्ठवण पडिक्कमणमाई॥१५३४ // नि०- जुजइ अकालपढियाइएसुदुहु अपडिच्छियाईसु।समणुन्नसमुद्देसे काउस्सग्गस्स करणं तु // 1535 // 1529-32 कायोत्सर्गमानम्। भाष्यः 234-235 नियुक्तिः 1533-38 कायोत्सर्गमानम्। भाष्य: 236 // 1404 //
SR No.600439
Book TitleAvashyak Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyakiritivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size14 MB
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