SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीआवश्यक नियुक्तिभाष्यश्रीहारि० वृत्तियुतम् भाग-४ // 1361 // 5. पञ्चममध्ययन कायोत्सर्गः, नियुक्तिः 1447-52 उत्सर्गस्य निक्षेपाः। गाथार्थः // 1446 // मूलद्वारगाथायां कायमधिकृत्य गतं निक्षेपद्वारम्, अधुनैकार्थिकान्युच्यन्ते, तत्र गाथा- कायः शरीरं देहः बोन्दी चय उपचयश्च सङ्कात उच्छूयः समुच्छ्रयश्च कडेवरं भस्त्रा तनुः पाणुरिति गाथार्थः // 231 // मूलद्वारगाथायां कायमधिकृत्योक्तान्येकार्थिकानि, अधुना उत्सर्गमधिकृत्य निक्षेप: एकार्थिकानि चोच्यन्ते, तत्र निक्षेपमधिकृत्याह नि०- नामंठवणादविए खित्ते काले तहेव भावे य। एसो उस्सग्गस्स उ निक्खेवो छव्विहो होइ॥१४४७ // नि०- दव्वुज्झणा उजंजेण जत्थ अवकिरइ दव्वभूओवा। जंजत्थ वावि खित्ते जंजच्चिर जंमि वा काले // 1448 // नि०- भावे पसत्थमियरंजेण व भावेण अवकिरइ जंतु। अस्संजमं पसत्थे अपसत्थे संजमंचयइ // 1449 // नि०- खरफरुसाइसचेयणमचेयणं दुरभिगंधविरसाई। दवियमवि चयइ दोसेण जेण भावुज्झणा साउ॥१४५०॥ नि०- उस्सग्ग विउस्सरणुज्झणा य अवगिरण छड्डण विवेगो। वजण चयणुम्मुअणा परिसाडण साडणा चेव // 1451 // उस्सगे निक्खेवो चउक्कओ छक्कओ अकायव्वो। निक्खेवं काऊणं परूवणा तस्स कायव्वा // 1 // (प्र०) नि०- सो उस्सग्गो दुविहो चिट्ठाए अभिभवे य नायव्वो। भिक्खायरियाइ पढमो उवसग्गभिजुंजणे बिइओ॥१४५२॥ नामंठवणादविए अर्थमधिकृत्य निगदसिद्धा, विशेषार्थं तु प्रतिद्वारं प्रपञ्चेन वक्ष्यामः, तत्रापि नामस्थापने गतार्थे, द्रव्योत्सर्गाभिधित्सया पुनराह- दव्वुज्झणा उजंजेण द्रव्योज्झना तु द्रव्योत्सर्गः स्वयमेव जन्ति यद् द्रव्यमनेषणीयं अवकिरति त्ति योग: अवकिरति- उत्सृजति जेणे ति येन करणभूतेन पात्रादिनोत्सृजति, जत्थ त्ति यत्र द्रव्ये उत्सृजति द्रव्यभूतो वाअनुपयुक्तो वा उत्सृजति एष द्रव्योत्सर्गोऽभिधीयते / क्षेत्रोत्सर्ग उच्यते जं जत्थ वावि खेत्ते त्ति यत्क्षेत्रं दक्षिणदेशाद्युत्सृजति यत्र वाऽपि क्षेत्रे उत्सर्गो व्यावय॑ते एष क्षेत्रोत्सर्गः, कालोत्सर्ग उच्यते- जं जच्चिर जम्मि वा काले त्ति यत्कालमुत्सृजति यथा // 1361 //
SR No.600439
Book TitleAvashyak Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyakiritivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy