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________________ श्रीआवश्यक नियुक्तिभाष्यश्रीहारि० वृत्तियुतम् भाग-४ // 1354 // चउसुवि गईसु देहो नेरइयाईण जोस गइकाओ / एसो सरीरकाओ विसेसणा होई गइकाओ॥१॥(प्र०) नि०- जेणुवगहिओ वच्चइ भवंतरं जच्चिरेण कालेण। एसो खलु गइकाओ सतेयगं कम्मगसरीरं / / 1435 // नि०- निययमहिओवकाओजीवनिकाओ निकायकाओय। अत्थित्तिबहुपएसा तेणं पंचत्थिकाया उ॥१४३६ // भा०-जंतु पुरक्खडभावंदवियं पच्छाकडं व भावाओ। तं होइ दव्वदवियं जह भविओ दव्वदेवाई॥२३१ / / (229) भा०- जइ अस्थिकायभावो अपएसो हुज्ज अत्थिकायाणं / पच्छाकडुव्व तो ते हविज दव्वत्थिकाया व // 232 // (230) नि०-तीयमणागयभावंजमत्थिकायाण नत्थि अत्थित्तं / तेन र केवलएसुंनत्थी दव्वत्थिकायत्तं // 1437 / / नि०- कामं भवियसुराइसु भावो सोचेव जत्थ वटुंति / एस्सो न ताव जायइ तेन र ते दव्वदेवुत्ति // 1438 // नि०- दुहओऽणंतररहिया जइ एवं तो भवा अणंतगुणा / एगस्स एगकाले भवा न जुजंति उ अणेगा // 1439 / / नि०- दुहओऽणंतरभवियं जह चिट्ठइ आउअंतु जंबद्धं / हुन्जियरेसुवि जइ तं दवभवा हुज्ज तो तेऽवि // 1440 // नि०-संझासु दोसुसूरो अदिस्समाणोऽवि पप्प समईयं / जह ओभासइ खित्तं तहेव एयपि नायव्वं // 1441 // भा०-माउयपयंति नेयं नवरं अन्नोविजो पयसमूहो / सो पयकाओ भन्नइ जे एगपए बहू अत्था॥२३३॥ (231) नि०-संगहकाओऽणेगावि जत्थ एगवयणेण घिप्पंति ।जह सालिगामसेणा जाओ वसही (ति) निविट्ठत्ति // 1442 // नि०- पज्जवकाओपुण हुंति पज्जवा जत्थ पिंडिया बहवे। परमाणुंमिविक्वंमिविजह वन्नाई अणंतगुणा // 1443 // नि०- एगो काओ दुहा जाओ एगो चिट्ठइ एगो मारिओ। जीवंतो अमएण मारिओ तं लव माणव! केण हेउणा?॥१४४४ // नि०- दुग तिग चउरो पंच व भावा बहुआ व जत्थ वटुंति / सो होइ भावकाओ जीवमजीवे विभासा उ॥१४४५ // 5. पञ्चम| मध्ययनं कायोत्सर्गः, नियुक्तिः 1429-46 गतिकाय निकायकाय जीवनिकायादिः। भाष्यः 231-233 // 1354 //
SR No.600439
Book TitleAvashyak Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyakiritivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size14 MB
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