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________________ श्रीआवश्यक नियुक्तिभाष्यश्रीहारि० वृत्तियुतम् भाग-३ // 1923 // दोन्नि य दिवड्दखेत्ते दब्भमया पुत्तला उ कायव्वा / समखेत्तंमि उ एक्को अवडऽभीए ण कायव्वो। नि०४१॥ द्वौ च सार्द्धक्षेत्रे, नक्षत्र इति गम्यते, दर्भमयौ पुत्तलको कार्यों, समक्षेत्रे च एकः, अवड्डऽभीए ण कायव्वो त्ति उपार्द्धभोगिष्वभीचिनक्षत्रे च न कर्तव्यः पुत्तलक इति गाथाक्षरार्थः // 41 // एवमन्यासामपि स्वबुद्ध्याऽक्षरगमनिका कार्या, भावार्थं तु वक्ष्यामः, प्रकृतगाथाभावार्थ:- कालगए समणेणखत्तंपलोइज्जइ, जइन पलोएति असमाचारी, पलोइएपणयालीसमुहत्तेसु नक्खत्तेसु दोण्णि कजंति, अकरणे अन्ने दो कडेइ, काणि पुण पणयालीसमुहुत्ताणि?, उच्यते तिण्णेव उत्तराई पुणव्वसू रोहिणी विसाहा य। एए छ नक्खत्ता पणयालमुहत्तसंजोगा। नि० 42 // तीसमुहुत्तेसु पुण पण्णरससु एगो कीरइ, अकरणे एगं चेव कड्डइ, तीसमुहुत्तियाणि पुण इमाणि अस्सिणिकित्तियमियसिर पुस्सो मह फग्गु हत्थ चित्ताय / अणुराह मूल साढा सवणधणिट्ठा य भद्दवया॥नि०४३॥ तह रेवइत्ति एए पन्नरस हवंति तीसइमुहुत्ता / नक्खत्ता नायव्वा परिट्ठवणविहीय कुसलेणं / नि०४४ // पनरसमुहुत्तिएसुपुण अभीइंमि य एक्कोवि न कीरइ, ताणि पुण एयाणि सयभिसया भरणीओ अद्दा अस्सेस साइ जेट्ठाय। एए छ नक्खत्ता पनरसमुहत्तसंजोगा। नि०४५॥ कुसपडिमत्ति दारं गयं, इयाणिं पाणयंति दारंसुत्तत्थतदुभयविऊ पुरओ घेत्तूण पाणय कुसे य / गच्छइ य जउड्डाहो परिट्ठवेऊण आयमणं / नि०४६॥ पञ्चदशमुहूर्त्तिकेषु पुनरभिजिति चैकोऽपि न क्रियते, तानि पुनरेतानि। 0 कुशप्रतिमेति द्वारं गतम्, इदानीं पानीयमिति द्वार-। 4. चतुर्थमध्ययनम् प्रतिक्रमणं, |4.2 | पारिष्ठापनि कानियुक्तिः। | नियुक्तिः |1272-73 | परिष्ठापने | प्रतिलेखनादीनि द्वाराणि। | नि०४१ कुशप्रतिमाद्वारम्। नि०४२-४६ | पानकद्वारम् आचमनम्। // 1123 //
SR No.600438
Book TitleAvashyak Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyakiritivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages508
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size35 MB
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