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________________ श्रीआवश्यक नियुक्तिभाष्यश्रीहारिक वृत्तियुतम् भाग-२ // 782 // भिधित्सुराह नमस्कारनि०-तिन्नि सया तित्तीसा धणुत्तिभागो अहोइ बोद्धव्वो। एसा खलु सिद्धाणं उक्कोसोगाहणा भणिआ॥९७१ // व्याख्या, नि०- चत्तारि अरयणीओ रयणितिभागूणिआय बोद्धव्वा / एसाखलु सिद्धाणं मज्झिमओगाहणा भणिआ॥९७२॥ व्याख्या, नियुक्तिः नि०- एगा य होइ रयणी अद्वैव य अंगुलाइ साहीआ। एसा खलु सिद्धाणं जहन्नओगाहणा भणिआ॥ 973 // 971-974 एतास्तिस्रोऽपि निगदसिद्धाः, नवरमाक्षेपपरिहारौ भाष्यकृतोक्तौ, तौ चेमौ- किह मरुदेवीमाणं? नाभीओजेण किंचिदूणा सिद्धशिलासा। तो किर पंचसयं चिय अहवा संकोयओ सिद्धा॥१॥ सत्तूसिएसु सिद्धी जहन्नओ किहमिहं बिहत्थेसु?। सा किर वर्णनम्, नमस्कारतित्थकरेसुं सेसाणं सिज्झमाणाणं // 2 // ते पुण होज्ज बिहत्था कुम्मापुत्तादओ जहन्नेणं / अन्ने संवट्टियसत्तहत्थसिद्धस्स फलानि। हीणत्ति // 3 // बाहुल्लतो य सुत्तंमि सत्त पंच य जहन्नमुक्कोसं। इहरा हीणब्भहियं होज्जंगुलधणुपुहुत्तेहिं॥ 4 // अच्छेरयाइ किंचिविसामन्नसुएण देसियंसव्वं / होज व अणिबद्धं चिय पंचसयादेसवयणंव॥५॥' इत्यादि कृतं प्रसङ्गेन।साम्प्रतमुक्तानुवादेनैव संस्थानलक्षणं सिद्धानामभिधातुकाम आह नि०-ओगाहणाइ सिद्धा भवत्तिभागेण हुँति परिहीणा ।संठाणमणित्थंत्थं जरामरणविप्पमुक्काणं // 974 // (r) कथं मरुदेवीमानं?, नाभितो येन किञ्चिदूना सा। ततः किल पञ्चशतमेव अथवा संकोचतः सिद्धा // 1 // सप्तोच्छूितेषु सिद्धिः जघन्यतः कथमिह द्विहस्तेषु? 8 सा किल तीर्थकराणां शेषाणां सिध्यताम् / / 2 / / ते पुनर्भवेयुर्द्विहस्ताः कूर्मापुत्रादयो जघन्येन / अन्ये संवर्तितसप्तहस्तसिद्धस्य हीनेति / / 3 / बाहुल्यतश्च सूत्रे सप्त // 782 // पश्च(शतानि) च जघन्या उत्कृष्टा (च)। इतरथा हीनमभ्यधिकं (क्रमशः) भवेदङ्गुलधनुःपृथक्त्वैः / / 4 / / आश्चर्यादि (आश्चर्यतया) किश्चिदपि सामान्यश्रुते न देशितं सर्वम् / भवेद्वाऽनिबद्धमेव पञ्चशतानादेशवचनवत् // 5 //
SR No.600437
Book TitleAvashyak Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyakiritivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size29 MB
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