________________ श्रीआवश्यक नियुक्तिभाष्यश्रीहारिक वृत्तियुतम् भाग-१ / / 284 // लदेवगतिप्रतिवणुतओचइता इत्यर्थ नि०- एगो असत्तमाए पंच य छट्ठीऍपंचमी एगो / एगो अचउत्थीए कण्हो पुण तच्चपुढवीएं // 413 / / एकश्च सप्तम्यां पञ्च च षष्ठ्यां पञ्चम्यामेकः एकश्च चतुर्थ्यां कृष्णः पुनस्तृतीयपृथिव्यां यास्यति गतो वेति सर्वत्र क्रियाध्याहारः कार्यः, भावार्थः स्पष्ट एव // 413 // बलदेवगतिप्रतिपिपादयिषयाऽऽह नि०- अटुंतगडा रामा एगो पुण बंभलोगकप्पंभि। उववण्णुतओ चइउंसिज्झिस्सइ भारहे वासे // 414 // अष्ट अन्तकृतोरामाः, अन्तकृत इति ज्ञानावरणीयादिकर्मान्तकृतः, सिद्धिंगता इत्यर्थः / एकः पुनः ब्रह्मलोककल्पे उत्पत्स्यते उत्पन्नो वेति क्रिया। ततश्च ब्रह्मलोकाच्च्युत्वा सेत्स्यति मोक्षं यास्यति भारते वर्ष इति गाथार्थः // 414 // आह- किमिति सर्वे वासुदेवाः खल्वधोगामिनो रामाश्चोर्ध्वगामिन इति?, आह नि०- अणिआणकडा रामा सव्वेऽवि अकेसवा निआणकडा। उढुंगामी रामा केसव सव्वे अहोगामी // 415 // 9 अनिदानकृतो रामाः, सर्वे अपि च केशवा निदानकृतः, ऊर्ध्वगामिनो रामाः, केशवाः सर्वे अधोगामिनः / भावार्थः 0वीसभूई 1 पव्वइए 2 धणदत्त 3 समुद्ददत्त 4 सेवाले 5 / पिअमित्त 6 ललिअमित्ते 7 पुणव्वसू 8 गंगदत्ते 9 अ // 1 // एयाइं नामाई फुवभवे आसि वासुदेवाणं। इत्तो बलदेवाणं जहक्कम कित्तइस्सामि // 2 // विस्सनंदी 1 सुबुद्धी 2 असागरदत्ते 3 असोअ४ ललिए 5 अ / वाराह 6 धणस्सेणे 7 अवराइअ 8 रायललिए य // 3 // संभूअ 1 सुभद्द 2 सुदंसणे 3 असिजंस 4 कण्ह 5 गंगे 6 / सागर 7 समुद्दनामे 8 दमसेणे 9 अ अपच्छिमे / / 4 / एए धम्मायरिआ कित्तीपुरिसाण वासुदेवाणं। पुव्वभवे आसीआ जत्थ निआणाइ कासी अ॥५॥ महुरा 1 य कणगवत्थू 2 सावत्थी 3 पोअणं 4 च रायगिहं 5 / कायंदी 6 मिहिलावि य 7 वाणारसि 8 हत्थिणपुरं 9 च॥ 6 // गावी जूए संगामे इत्थी पाराइए अ रंगंमि। भजाणुरागगुट्ठी परइड्डी माउगा इअ॥७॥ महसुक्का पाणय लंतगाउ सहसारओ अ माहिंदा। बंभा सोहम्म 8 सणंकुमार नवमो महासुक्का / / 8 / / तिण्णेवणुत्तरेहिं तिण्णेव भवे तहा महासुक्का / अवसेसा बलदेवा अर्णतरं बंभलोगचुआ।। 9 / / (प्र० अव्या०)10 उववन्नु तत्थ | भोए, भोत्तुं अयरोवमा दस उ॥१॥ तत्तो अ चइत्ताणं इहेव उस्सप्पिणीइ भरहमि। भवसिद्धिआ अ भयवं सिज्झिस्सइ कण्हतित्थंमि / / (सार्धा पाठान्तररूपा)। 0.3 उपोद्धातनियुक्तिः, 0.3.2 द्वितीयद्वारम्, वीरजिनादिवक्तव्यता: नियुक्तिः 413-415 वासुबलदेवानां वर्णप्रमाणगोत्रायुःपुरमातापितृपर्यायगतिनिदानानि। // 284 //