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________________ 838 // श्रीआवश्यक नियुक्तिभाष्यश्रीहारि० वृत्तियुतम् भाग-१ // 277 // नि०- अह भणइ जिणवरिंदो भरहे वासंमि जारिसो अहयं / एरिसया तेवीसं अण्णे होहिंति तित्थयरा // 369 // निगदसिद्धा ॥ते चैवं नि०- होही अजिओ संभव अभिणंदण सुमइ सुप्पभ सुपासो।ससि पुष्फदंत सीअल सिजंसो वासुपुञ्जो अ॥३७०॥ नि०- विमलमणंतइ धम्मो संती कुंथूअरो अमल्ली ।मुणिसुव्वय नमि नेमी पासोतह वर्धमाणो अ॥३७१॥ भावार्थःसुगम एव॥ नि०- अह भणइ नरवरिंदो भरहे वासंमि जारिसो उ अहं / तारिसया कइ अण्णे ताया होहिंति रायाणो? // 372 // अथ भणति नरवरेन्द्रो- भरतः, भारते वर्षे यादृशस्त्वहं तादृशाः कत्यन्ये तात! भविष्यन्ति राजान इति गाथार्थः॥३७२।। नि०- अह भणइ जिणवरिंदो जारिसओतं नरिंदसठूलो। एरिसया एक्कारस अण्णे होहिंति रायाणो॥ 373 // अथ भणति जिनवरेन्द्रो- यादृशस्त्वं नरेन्द्रशार्दूलः, शार्दूल:- सिंहपर्यायः, ईदृशा एकादश अन्ये भविष्यन्ति राजानः॥ 373 // ते चैते नि०- होही सगरो मघवं सणंकुमारो य रायसठूलो।संती कुंथू अअरो होइ सुभूमो य कोरव्वो॥३७४ / / नि०- णवमो अमहापउमो हरिसेणो चेव रायसठूलो। जयनामो अनरवई बारसमो बंभदत्तो अ॥३७५॥ गाथाद्वयं निगदसिद्धमेव / यदुक्तं अपृष्टश्च दशारान् कथितवान् तदभिधित्सुराह भाष्यकार:७ चेति / (r) सुपासे। (r) तादृशः। ॐ हवइ / 7 त्सयाह / 0.3 उपोद्घातनियुक्तिः, 0.3.2 द्वितीयद्वारम्, वीरजिनादिवक्तव्यताः। नियुक्तिः |369-375 तीर्थङ्कराः (23) चक्रिणांप्रश्नो नामानिच। // 277 //
SR No.600436
Book TitleAvashyak Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyakiritivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages498
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size36 MB
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