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________________ श्रीआवश्यक नियुक्तिभाष्यश्रीहारिक वृत्तियुतम् भाग-१ // 248 // द्वितीयद्वारम्, श्रामण्य // 305 // 0.3 उपोद्घातएताश्च एकोनत्रिंशदपि गाथाः सूत्रसिद्धा एव द्रष्टव्या इति / गतं पर्यायद्वारम्, इदानीमन्तक्रियाद्वारावसर इति, तत्रान्ते ब्ल नियुक्तिः, 0.3.2 क्रिया अन्तक्रिया-निर्वाणलक्षणा, सा कस्य केन तपसा क्व जाता?, वाशब्दात्कियत्परिवृतस्य चेत्येतत्प्रतिपादयन्नाहनि०-निव्वाणमंतकिरिआसा चउदसमेण पढमनाहस्स।सेसाण मासिएणं वीरजिणिंदस्स छटेणं // 306 // वीरजिनादि वक्तव्यताः। नि०- अट्ठावयचंपुल्चिंतपावासम्मेअसेलसिहरेसुं। उसभ वसुपुज्ज नेमी वीरो सेसा य सिद्धिगया॥३०७॥ नियुक्तिः३०५ नि०- एगो भयवं वीरो तित्तीसाइ सह निव्वुओ पासो। छत्तीसएहिं पंचहिं सएहि नेमी उ सिद्धिगओ॥३०८॥ कुमारत्वादि नि०- पंचहि समणसएहिं मल्ली संती उ नवसएहिं तु / अट्ठसएणं धम्मो सएहि छहि वासुपुज्जजिणो॥३०९॥ द्वाराणि। नियुक्तिः नि०- सत्तसहस्साणंतइजिणस्स विमलस्स छस्सहस्साई। पंचसयाइ सुपासे पउमाभे तिण्णि अट्ठसया॥३१०॥ 306-313 नि०- दसहि सहस्सेहि उसभो सेसा उसहस्सपरिवुडा सिद्धा। कालाइ जंन भणिपढमणुओगाउ तंणेअं॥३११॥ निर्वाणतप:नि०- इच्चेवमाइ सव्वं जिणाण पढमाणुओगओणे। ठाणासुण्णत्थं पुण भणिअं२१ पगयं अओ वुच्छं // 312 // परिवाराः। नि०- उसभजिणसमुट्ठाणं उट्ठाणं जंतओ मरीइस्स।सामाइअस्स एसोजंपुव्वं निग्गमोऽहिगओ॥३१३॥ नियुक्ति:३१४ प्रव्रज्या एता अप्यष्टौ निगदसिद्धा एव।। विहारश्च। नि०-चित्तबहुलट्ठमीए चउहि सहस्सेहि सो उ अवरहे। सीआसुदंसणाए सिद्धत्थवर्णमि छट्टेणं // 314 // चैत्रबहुलाष्टम्यां चतुर्भिः सहस्रैः समन्वितः सन् अपराह्ने शिबिकायां सुदर्शनायां व्यवस्थितः सिद्धार्थवने षष्ठेन भक्तेन निष्क्रान्त इति वाक्यशेषः, अलङ्करणकं परित्यज्य चतुर्मुष्टिकं च लोचं कृत्वेति // ३१४॥आह-चतुर्भिः सहस्रैः समन्वित इत्युक्तम्, स्थान // 248 //
SR No.600436
Book TitleAvashyak Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyakiritivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages498
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size36 MB
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