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________________ श्रीआवश्यक नियुक्तिभाष्यश्रीहारिक वृत्तियुतम् भाग-१ // 245 // 0.3 उपोद्धातनियुक्तिः, 0.3.2 द्वितीयद्वारम्, वीरजिनादिवक्तव्यताः। नियुक्तिः एतास्तिस्रोऽपि निगदसिद्धा एव, नवरमेकवाचनाचारक्रियास्थानां समुदायो गणो न कुलसमुदाय इति पूज्या व्याच ॥२६६-२६७-२६८॥गतं गणद्वारम्, अधुना गणधरद्वारव्याचिख्यासयाऽऽह नि०- एक्कारस उगणहरा जिणस्स वीरस्ससेसयाणं तु / जावइआ जस्स गणा तावइआगणहरा तस्स 18 // 269 / / निगदसिद्धव, नवरं मूलसूत्रकर्त्तारो गणधरा उच्यन्ते ॥२६९॥गतं गणधरद्वारम्, इदानीं धर्मोपायस्य देशका इत्येतद्व्याचिख्यासुराह नि०-धम्मोवाओ पवयणमहवा पुव्वाइँदेसगा तस्स / सव्वजिणाण गणहरा चउदसपुव्वी वजे जस्स / / 270 // नि०-सामाइयाइया वा वयजीवणिकायभावणा पढमं / एसो धम्मोवाओ जिणेहि सव्वेहि उवइट्ठो 19 // 271 // गाथाद्वयमपीदं सूत्रसिद्धमेव // 270 / / २७१॥गतं धर्मोपायस्य देशका इति द्वारम्, इदानीं पर्यायद्वारप्रतिपादनायाहनि०- उसभस्स पुव्वलक्खं पुव्वंगुणमजिअस्सतंचेव। चउरंगूणं लक्खं पुणो पुणो जाव सुविहित्ति // 272 // नि०- पणवीसंतुसहस्सा पुव्वाणंसीअलस्स परिआओ।लक्खाइंइक्कवीसं सिजंसजिणस्स वासाणं // 273 // नि०-चउपण्णं 12 पण्णारस 13 तत्तो अट्ठमाइ लक्खाइं१४ / अड्डाइजाई 15 तओवाससहस्साईपणवीसं 16 // 274 // नि०- तेवीसंच सहस्सा सयाणि अट्ठमाणि अहवंति 17 / इगवीसंचसहस्सा 18 वाससउणाय पणपण्णा 19 // 275 // नि०- अट्ठमा सहस्सा 20 अड्डाइजाय 21 सत्तय सयाई 22 / सयरी 23 बिचत्तवासा 24 दिक्खाकालो जिणिंदाणं // 276 // एताः पञ्च निगदसिद्धा एव // 272-276 // एवं तावत्सामान्येन प्रव्रज्यापर्यायः प्रतिपादितः, साम्प्रतमत्रैव भेदेन भगवतां कुमारादिपर्यायं प्रतिपादयन्नाह 269-276 गणधरदेशनादिद्वाराणि। // 245 //
SR No.600436
Book TitleAvashyak Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyakiritivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages498
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size36 MB
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