________________ श्रीआवश्यक नियुक्तिभाष्यश्रीहारि० वृत्तियुतम् भाग-१ // 244 // नि०-चउदस य सहस्साइं२४ जिणाण जइसीससंगहपमाणं / अज्जासंगहमाणं उसभाईणं अओवुच्छं / 259 // नि०-तिण्णेव यलक्खाइं१तिण्णि यतीसाय 2 तिण्णि छत्तीसा ३।तीसाय छच्च ४पंचयतीसा५ चउरो अवीसा अ॥२६०॥ नि०- चत्तारि अतीसाइं७ तिण्णि अअसिआइ८तिण्हमेत्तो।वीसुत्तरं 9 छलहिअं१० तिसहस्सहिअंचलक्खंच 11 // 261 // नि०-लक्खं१२ अट्ठसयाणि अ१३बावट्ठिसहस्स १४चउसयसमग्गा 15 / एगट्ठी छच्चसया १६सट्ठिसहस्सासया छच्च 17 // 262 // नि०-सट्ठि 18 पणपण्ण १९वण्णे 20 गचत्त 21 चत्ता 22 तहट्टतीसंच 23 / छत्तीसंचसहस्सा 24 अजाणं संगहो एसो॥२६३॥ नि०- पढमाणुओगसिद्धो पत्तेअंसावयाइआणंपि। नेओसव्वजिणाणं सीसाण परिग्गहो (संगहो) कमसो 15 // 264 // एता अपि नव गाथाः स्पष्टा एवेति न प्रतन्यन्ते // 256-264 ॥गतं संग्रहद्वारम्, व्याख्याता च द्वितीयद्वारगाथेति / साम्प्रतं तृतीयाद्यद्वारप्रतिपादनाय आह नि०-तित्थं चाउव्वण्णो संघो सो पढमए समोसरणे / उप्पण्णो अजिणाणं वीरजिणिंदस्स बीअंमि 16 // 265 // निगदसिद्धैव, नवरं वीरजिनेन्द्रस्य द्वितीये इत्यत्र यत्र केवलमुत्पन्नंकल्पात्तत्र कृतसमवसरणापेक्षया मध्यमायां द्वितीयमुच्यत इति // २६५॥गतं तीर्थद्वारम्, साम्प्रतं गणद्वारं व्याचिख्यासुराह नि०-चुलसीइ 1 पंचनउई 2 बिउत्तरं 3 सोलसुत्तर 4 सयंच 5 / सत्तहिअं६ पणनउई 7 तेणउई 8 अट्ठसीई अ९॥२६६॥ नि०- इक्कासीई 10 बावत्तरी अ११ छावट्ठि 12 सत्तवण्णाय १३।पण्णा 14 तेयालीसा 15 छत्तीसा १६चेव पणतीसा 17 // 267 // नि०-तित्तीस 18 अट्ठवीसा 19 अट्ठारस 20 चेव तहय सत्तरस 21 / इक्कारस 22 दस 23 नवगं 24 गणाण माणं जिणिंदाणं 17 // 268 // 0.3 उपोद्घातनियुक्तिः, 0.3.2 द्वितीयद्वारम्, वीरजिनादिवक्तव्यताः। नियुक्ति: 259 छद्मस्थकालतपोज्ञानोत्पादादिः। नियुक्तिः 260-268 संग्रहतीर्थगणादि द्वाराणि। // 244 //