________________ 0.3 उपोद्धातनियुक्तिः, श्रीआवश्यक नियुक्तिभाष्यश्रीहारि० वृत्तियुतम् भाग-१ // 243 // नि०- पोसस्स पुण्णिमाए नाणं धम्मस्स पुस्सजोएणं 15 / पोसस्स सुद्धनवमी भरणीजोगेण संतिस्स 16 // 248 // नि०-चित्तस्स सुद्धतइआ कित्तिअजोगेण नाण कुंथुस्स 17 / कत्तिअसुद्धे बारसि अरस्स नाणं तुरेवइहिं 18 // 249 // नि०- मग्गसिरसुद्धइक्कारसीइ मल्लिस्स अस्सिणीजोगे 19 / फग्गुणबहुले बारसि सवणेणंसुव्वयजिणस्स 20 // 250 // नि०- मगसिरसुद्धिक्कारसि अस्सिणिजोगेण नमिजिणिंदस्स 21 / आसोअमावसाए नेमिजिणिंदस्स चित्ताहिं 22 // 251 // नि०-चित्ते बहुलचउत्थी विसाहजोएणपासनामस्स 23 / वइसाहसुद्धदसमी हत्थुत्तरजोगि वीरस्स 24 / 14 // 252 // नि०- तेवीसाए नाणं उप्पण्णं जिणवराण पुव्वण्हे / वीरस्स पच्छिमण्हे पमाणपत्ताएँ चरिमाए॥२५३॥ एताश्च त्रयोदश गाथा निगदसिद्धाः। साम्प्रतमधिकृतद्वार एव येषु क्षेत्रेषूत्पन्नं तदेतदभिधित्सुराह नि०- उसभस्स पुरिमताले वीरस्सुजुवालिआनईतीरे। सेसाण केवलाइंजेसुजाणेसु पव्वइआ॥२५४॥ निगदसिद्धा / साम्प्रतमिहैव यस्य येन तपसोत्पन्नं तत्तपः प्रतिपादयन्नाह नि०- अट्ठमभत्ततमी पासोसहमल्लिरिटुनेमीणं / वसुपुजस्स चउत्थेण छट्ठभत्तेण सेसाणं // 255 // निगदसिद्धा। गतं ज्ञानोत्पादद्वारम्, इदानी संग्रहद्वारं विवरीषुराह नि०-चुलसीइंच सहस्सा 1 एगंच 2 दुवे अ 3 तिण्णि 4 लक्खाई।तिण्णि अवीसहिआई५ तीसहिआइंच तिण्णेव 6 // 256 // नि०- तिण्णि अ७ अड्डाइजा 8 दुवे अ९एगंच 10 सयसहस्साई।चुलसीइंच सहस्सा 11 बिसत्तरि 12 अट्ठसठिंच 13 // 257 // नि०- छावढि 14 चउसर्व्हि 15 बावहिँ 16 सट्ठिमेव 17 पण्णासं 18 / चत्ता 19 तीसा 20 वीसा 21 अट्ठारस 22 सोलस 23 सहस्सा // 258 // द्वितीयद्वारम्, वीरजिनादिवक्तव्यताः। नियुक्तिः 247-258 छद्यस्थकालतपोज़ानोत्पादादिः। // 243 //