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________________ श्रीसूत्रकृताङ्गं नियुक्तिश्रीशीला० वृत्तियुतम् श्रुतस्कन्धः२ // 522 // श्रुतस्कन्धः 2 प्रथममध्ययनं पौण्डरीकम्, सूत्रम् 11 (646) कारणिकः जाए सरीरे संवुढे सरीरे अभिसमण्णागए सरीरमेव अभिभूय चिट्ठति, एवमेव धम्मा विपुरिसादिया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति / से जहाणामए अरई सिया सरीरे जाया सरीरे संवुड्डा सरीरे अभिसमण्णागया सरीरमेव अभिभूय चिट्ठति, एवमेव धम्मावि पुरिसादिया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति / से जहाणामए वम्मिए सिया पुढविजाए पुढविसंवुढे पुढविअभिसमण्णागए पुढविमेव अभिभूय चिट्ठइ एवमेव धम्मावि पुरिसादिया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति / से जहाणामए रुक्खे सिया पुढविजाए पुढविसंवुड्ढे पुढविअभिसमण्णागए पुढविमेव अभिभूय चिट्ठइ, एवमेव धम्मावि पुरिसादिया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति / से जहाणामए पुक्खरिणी सिया पुढविजाया जाव पुढविमेव अभिभूय चिट्ठति, एवमेव धम्मावि पुरिसादिया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिटुंति।से जहाणामए उदगपुक्खले सिया उदगजाए जाव उदगमेव अभिभूय चिट्ठति, एवमेव धम्माविपुरिसादिया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति / से जहाणामए उदगबुब्बुए सिया उदगजाए जाव उदगमेव अभिभूय चिट्ठति, एवमेव धम्मावि पुरिसादिया जावपुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति // जंपिय इमंसमणाणं णिग्गंथाणं उद्दिटुंपणीयं वियंजियं दुवालसंगं गणिपिडयं, तंजहा- आयारोसूयगडोजाव दिट्ठिवातो, सव्वमेवं मिच्छा, ण एवं तहियं, ण एवं आहातहियं, इमं सच्चं इमं तहियं इमं आहातहियं, ते एवं सन्नं कुव्वंति, ते एवं सन्नं संठवेंति, ते एवं सन्नं सोवट्ठवयंति, तमेवं ते तज्जाइयं दुक्खं णातिउटुंति सउणी पंजरं जहा // ते णो एवं विप्पडिवेदेति, तंजहाकिरियाइ वा जाव अणिरए इवा, एवामेव ते विरूवरूवेहिं कम्मसमारंभेहिं विरूवरूवाई कामभोगाइंसमारंभंति भोयणाए, एवामेव ते अणारिया विप्पडिवन्ना एवं सद्दहमाणा जाव इति ते णो हव्वाए णो पाराए, अंतरा कामभोगेसु विसण्णेत्ति, तच्चे पुरिसजाए ईसरकारणिएत्ति आहिए / / सूत्रम् 11 // ( // 646 // ) अथ द्वितीयपुरुषादनन्तरं तृतीय ईश्वरकारणिक आख्यायते, समस्तस्यापि चेतनाचेतनरूपस्य जगत ईश्वरः कारणम्, // 522
SR No.600435
Book TitleSutrkritang Sutram Dwitiya Shrutskandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyakiritivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_sutrakritang
File Size24 MB
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