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________________ श्रीसूत्रकृताङ्ग नियुक्तिश्रीशीला० वृत्तियुतम् श्रुतस्कन्धः१ // 455 // श्रुतस्कन्धः१ चतुर्दशमध्ययन ग्रन्थ:, सूत्रम् 21-24 (600-603)| विभज्यवादः भाषास्वरूपादिः भाषासमितियुक्तेन भाव्यमिति // 19 // 598 // किंनिमित्तमाशीर्वादोन विधेय इत्याह-भूतेषु-जन्तुषूपमर्दशङ्का भूताभिशङ्का तयाऽऽशीर्वादं सावधं सपापं जुगुप्समानो न ब्रूयात् तथा गास्त्रायत इति गोत्रं- मौनं वाक्संयमस्तं मन्त्रपदेन विद्यापमार्जनविधिना न निर्वाहयेत् न निःसारं कुर्यात् / यदिवा गोत्रं- जन्तूनां जीवितं 'मन्त्रपदेन' राजादिगुप्तभाषणपदेन राजादीनामुपदेशदानतो 'न निर्वाहयेत्' नापनयेत्, एतदुक्तं भवति-न राजादिना सार्धं जन्तुजीवितोपमर्दकं मन्त्रं कुर्यात्, तथा प्रजायन्त इति प्रजा:जन्तवस्तासु प्रजासु मनुजो मनुष्यो व्याख्यानं कुर्वन् धर्मकथां वा न किमपि लाभपूजासत्कारादिकं इच्छेद् अभिलषेत्, तथा कुत्सितानां- असाधूनां धर्मान्- वस्तुदानतर्पणादिकान् न संवदेत् न ब्रूयाद् यदिवा नासाधुधर्मान् ब्रुवन् संवादयेद् अथवा धर्मकथां व्याख्यानं वा कुर्वन् प्रजास्वात्मश्लाघारूपां कीर्तिं नेच्छेदिति // 20 // 599 // किञ्चान्यत् हासं पिणो संधति पावधम्मे, ओए तहीयं फरुसं वियाणे। णो तुच्छए णो य विकंथइजा, अणाइले या अकसाइ भिक्खू॥ सूत्रम् 21 / / ( // 600 / ) संकेज याऽसंकितभाव भिक्खू, विभजवायंच वियागरेज्जा ।भासादुयं धम्मसमुट्टितेहिं, वियागरेजा समया सुपन्ने / सूत्रम् 22 // ( // 601 // ) अणुगच्छमाणे वितहं विजाणे, तहा तहा साहु अकक्कसेणं।ण कत्थई भास विहिंसइज्जा, निरुद्धगंवाविन दीहइज्जा // सूत्रम् 23 / / ( // 602 // ) समालवेज्जा पडिपुन्नभासी, निसामिया समियाअट्ठदंसी। आणाइ सुद्धं वयणं भिउंजे, अभिसंधए पावविवेग भिक्खू // सूत्रम् ®जीवितं तद् मन्त्र (प्र०)। // 455 //
SR No.600434
Book TitleSutrkritang Sutram Pratham Shrutskandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyakiritivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages520
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_sutrakritang
File Size36 MB
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