________________ श्रीसूत्रकृताङ्ग नियुक्तिश्रीशीला० वृत्तियुतम् श्रुतस्कन्धः१ // 224 // नि०- असिसत्तिकोंततोमरसूलतिसूलेसुसूइचियगासु। पोयंति रुद्दकम्मा उणरगपाला तहिं रोद्दा // 72 // | श्रुतस्कन्धः१ नि०-भंजंति अंगमंगाणि ऊरूबाहूसिराणि करचरणे / कप्पेंति कप्पणीहिं उवरुद्दा पावकम्मरया // 73 // | पञ्चममध्ययनं नरकविभक्तिः , नि०- मीरासु सुंठएसु य कंडूसु य पयंडएसुय पयंति / कुंभीसुय लोहिएसुय पयंति काला उणेरतिए / / 74 // प्रथमोद्देशकः नि०- कप्पंति कागिणीमंसगाणि छिंदंति सीहपुच्छाणि / खावंति यणेरइए महकाला पावकम्मरए।७५ // नियुक्तिः 68-82 नि०- हत्थे पाए ऊरू बाहुसिरापायअंगमंगाणि / छिंदंति पगामंतू असि णेरइए निरयपाला // 76 / / नरकपालकृता नि०- कॅण्णोट्ठणासकरचरणदसणथणफिगुरुबाहूणं / छेयणभेयणसाडण असिपत्तधणूहि पाडंति / / 77 // वेदना नि०- कुम्भीसुय पयणेसुय लोहिसु य कंदुलोहिकुंभीसु। कुंभी यणरयपाला हणंति पाचिंति णरएसु / / 78 / / नि०- तडतडतडस्स भजंति भायणे कलंबुवालुगापट्टे / वालूगाणेरड्या लोलंती अंबरतलंमि // 79 // नि०- पूयरुहिरकेसट्ठिवाहिणी कलकलेंतजलसोया। वेयरणि णिरयपाला णेरइए ऊपवाहति // 8 // नि०- कप्पेंति करकएहिं तच्छिंति परोप्परं परसुएहिं / सिंबलितरुमारुहंती खरस्सरा तत्थ णेरइए // 81 // नि०- भीए य पलायंते समंततो तत्थ ते णिरुंभंति / पसुणो जहा पसुवहे महघोसा तत्थ णेरइए॥८२॥ तत्राम्बाभिधानाः परमाधार्मिकाः स्वभवनान्नरकावासं गत्वा क्रीडया नारकान् अत्राणान् सारमेयानिव शूलादिप्रहारैस्तुदन्तो धाडेंति त्ति प्रेरयन्ति- स्थानात् स्थानान्तरं प्रापयन्तीत्यर्थः, तथा पहाडेंति त्ति स्वेच्छयेतश्चेतश्चानाथं भ्रमयन्ति, // 224 // तथा अम्बरतले प्रक्षिप्य पुनर्निपतन्तं मुद्रादिना घ्नन्ति, तथा शूलादिना विध्यन्ति, तथा निसुंभंति त्ति कृकाटिकायां गृहीत्वा / 0 कंठुट्ठ० (प्र०)। (r) पूओरु० (प्र०)।