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________________ श्रीसूत्रकृताङ्गं नियुक्तिश्रीशीला० वृत्तियुतम् श्रुतस्कन्धः 1 // 221 // राजगृहमगधादिकं गृह्यते, तच्चेदं रायगिह मगह चंपा अंगा तह तामलित्ति वंगा य। कंचणपुरं कलिंगा वाणारसी चेव कासी श्रुतस्कन्धः१ य॥१॥ साकेय कोसला गयपुरं च कुरु सोरियं कुसट्टा य। कंपिल्लं पंचाला अहिछत्ता जंगला चेव॥२॥ बारवई य सुरट्ठा मिहिल। पचममध्ययन नरकविभक्तिः , विदेहा य वच्छ कोसंबी। नंदिपुरं संदिब्भा भदिलपुरमेव मलया य॥ 3 // वइराड वच्छ वरणा अच्छा तह मित्तियावइ दसण्णा।। प्रथमोद्देशकः सुत्तीमई यचेदी वीयभयं सिंधुसोवीरा // 4 // महुरा य सूरसेणा पावा भंगी य मासपुरि वट्टौं / सावत्थी य कुणाला, कोडीवरिसं च / | नियुक्तिः६४ विभक्तेनिक्षेपाः लोढा य॥ 5 // सेयवियाविय णयरि केययअद्धं च आरियं भणियं। जत्थुप्पत्ति जिणाणं चक्कीणं रामकिण्हाणं॥ 6 // अनार्यक्षेत्रं धर्मसंज्ञारहितमनेकधा, तदुक्तं-संग जवण सबर बब्बर कायमुरुडोड्डयोड्डपक्कणिया / अक्खाणगहूणरोमय पारसखसासिया चेव॥१॥ तुंबिलयलवोस बोक्कस भिल्लंद पुलिंद कोंच भमर रूया। कोंबोयंचीण चंचुय मालय दमिला कुलक्खा य॥२॥ केकय किराय हय मुह खरमुह गयतुरगमेढगमुहा य। हयकण्णा गयकण्णा अण्णे य अणारिया बहवे॥३॥ पावा य चंडदंडा अणारिया णिग्घिणा णिरणुकंपा। Oगृह्यते, 'रायगिह' (मु०)। 0 राजगृहं मगधे चम्पाङ्गे ताम्रलिप्तिर्वङ्गे। काञ्चनपुरं कलिङ्गे वाणारसी काश्याम् // 1 // साकेतं कौशले गजपुरं च कुरुषु सौरिक 8च कुशाः / काम्पिल्यं पञ्चालायां अहिच्छत्रं जङ्गलायां चैव // 2 // द्वारवती सुराष्ट्रायां मिथिला विदेहेषु वत्से कौशाम्बी / नन्दीपुरं साण्डिल्ये भद्रिलपुरं मलये // 3 // वैराटं वच्छे वरणे अच्छा मृत्तिकावती दशाणे / शुक्तिमती चेदिके वीतभयं सिन्धौ सौवीरे // 4 // मथुरा च शूरसेने पापायां भङ्गं मासा पुर्यां श्रावस्तिश्च कुणालायां: कोटीवर्षं च लाटे च / / 5 / / श्वेताम्बिकापि च नगरी कैकेय्यर्द्ध चार्य भाणितं / यत्रोत्पत्तिर्जिनानां चक्रिणां रामकृष्णानाम्।।६।। 0शकयवनशबरबर्बरकायमुरुडदुडगौडपक्कणिकाः आख्याकहणरोमाः पारसखसखासिका क्षेव / / 1 // द्विबलश्चलौसबुक्कसाः भिल्लान्ध्रपुलिन्द्रको चभ्रमररुकाः। क्रौद्याश्च चीनच शुकमालवद्रमिलकुलाख्याश्च / 8 // 2 // कैकेयकिरातहयमुखखरमुखाः गजतुरगमेण्ढमुखाश्च / हयकर्णा गजकर्णाः अन्ये च अनार्या बहवः // 3 // पापाश्चण्डदण्डाः अनार्या निघृणा निरनुकम्पाः। - * वाराणसी (प्र०)।* मासपरिपट्ट (प्र०)10 कायमुरुडो दुणोगणपक्कणया / अकखागहूणरोमस पारसखसखासिया चेव // 1 // दुविल० (मु०)।* मिल्लंध (प्र०)8 पलउसबोक्कस (प्र०)।* कोंचा य (प्र०)। * तह (प्र०) मुह तह तुरनमेंढग (प्र०)। रुद्दा (प्र०) पावा पचंदंडा (प्र०)। निरणुतावी (प्र०)। // 221 //
SR No.600434
Book TitleSutrkritang Sutram Pratham Shrutskandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyakiritivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages520
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_sutrakritang
File Size36 MB
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