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________________ श्रीसूत्रकृताङ्ग नियुक्तिश्रीशीला० वृत्तियुतम् श्रुतस्कन्धः१ // 115 // श्रुतस्कन्धः द्वितीयमध्यय वैतालीयम्, द्वितीयोद्देशक सूत्रम् 5-8 (115-118 धर्मकथक अतो यावन्मृत्युकालंतावल्लज्जामदपरित्यागोपेतेन संयमानुष्ठाने प्रवर्तितव्यमिति स्यात् // 4 // 114 // किमालम्ब्यैतद्विधेयमिति, उच्यते दूरं अणुपस्सिया मुणी, तीतं धम्ममणागयंतहा / पुढे परुसेहिँ माहणे, अवि हण्णू समयंमि रीयइ ।सूत्रम् 5 // ( // 115 // ) पण्णसमत्ते सया जए, समताधम्ममुदाहरे मुणी। सुहमे उसया अलूसए, णो कुज्झेणो माणि माहणे // सूत्रम् 6 // // 116 // ) दूरवर्त्तित्वात् दूरो- मोक्षस्तमनु- पश्चाद् दृष्ट्वा यदिवा- दूरमिति- दीर्घकालं अनुदृश्य पर्यालोच्य मुनिः कालत्रयवेत्ता दूरमेव दर्शयति- अतीतं धर्म स्वभावं- जीवानामुच्चावचस्थानगतिलक्षणं तथा अनागतं च धर्म- स्वभावं पर्यालोच्य लज्जामदौ न विधेयौ, तथा स्पृष्टः छुप्तः परुषैः दण्डकशादिभिर्वाग्भिर्वा माहणे त्ति मुनिः अवि हण्णू त्ति अपि मार्यमाणः स्कन्दकशिष्यगणवत् समये संयमे रीयते तदुक्तमार्गेण गच्छतीत्यर्थः, पाठान्तरं वा समयाऽहियासए'त्ति समतया सहत इति // 5 // 115 // पुनरप्युपदेशान्तरमाह- प्रज्ञायां समाप्तः प्रज्ञासमाप्तः- पटुप्रज्ञः, पाठान्तरंवा पण्हसमत्थे' प्रश्नविषये प्रत्युत्तरदानसमर्थः सदा सर्वकालं जयेत्, जेयं कषायादिकमिति शेषः / तथा समया- समता तया धर्म- अहिंसादिलक्षणं उदाहरेत् कथयेत् मुनिः यतिः सूक्ष्मे तुसंयमे यत्कर्तव्यं तस्य अलूषकः अविराधकः, तथा न हन्यमानो वा पूज्यमानो वा क्रुध्येन्नापि मानी गर्वितः स्यात् माहणो यतिरिति // 6 // 116 // अपिच बहुजणणमणमि संवुडो, सव्वटेहि णरे अणिस्सिए। हरए वसया अणाविले, धम्मं पादुरकासि कासवं।सूत्रम् 7 // // 117 // ) बहवे पाणा पुढो सिया, पत्तेयं समयं समीहिया / जो मोणपदं उवट्टिते, विरतिं तत्थ अकासि पंडिए।सूत्रम् 8 // ( // 118 // ) (r) समयाहियासए पा०। 0 पण्हसमत्थे पा०। 0 पश्चात् तं दृष्टा (मु०)10 उवेहिया (प्र०)। // 115 //
SR No.600434
Book TitleSutrkritang Sutram Pratham Shrutskandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyakiritivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages520
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_sutrakritang
File Size36 MB
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