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________________ श्रीस्थानाङ्गं श्रीअभय० वृत्तियुतम् भाग-२ // 790 // सातात् - पुण्यप्रकृतेः सकाशाद्यत्सौख्यं- सुखं गन्धरसस्पर्शलक्षणं विषयसम्पाद्यं तत्र प्रतिबद्धः- तत्परो ब्रह्मचारी, सातग्रहणादुपशमसौख्यप्रतिबद्धतायांन निषेधो, वापीति समुच्चये, भवति 9 / उक्तविपरीताः अगुप्तयोऽप्येवमेवेति / उक्तरूपं नवगुप्तिसनाथं च ब्रह्मचर्यं जिनैरभिहितमिति जिनविशेषौ प्रकृताध्ययनावतारद्वारेणाह अभिणंदणाओणं अरहओ सुमती अरहा नवहिंसागरोवमकोडीसयसहस्सेहिं विइक्वंतेहिंसमुप्पन्ने / सूत्रम् 664 // नव सब्भावपयत्था पं० २०-जीवा अजीवा पुण्णं पावो आसवो संवरो निजरा बंधो मोक्खो ९॥सूत्रम् 665 // णवविहा संसारसमावन्नगा जीवा पं० तं०- पुढविकाइया जाव वणस्सइकाइया बेइंदिया जाव पंचिंदितत्ति 1 पुढविकाइया नवगइया नवआगतिता पं० तं०-पुढवीकाइ पुढविकाइएसु उववजमाणे पुढविकाइएहिंतो वा जावपंचिंदियेहिंतो वा उववजेजा, से चेव णं से पुढविकाइए पुढविकायत्तं विप्पजहमाणे पुढविकाइयत्ताए जाव पंचिंदियत्ताते वा गच्छेजा 2 एवमाउकाइयावि 3 जाव पंचिंदियत्ति 10 णवविधा सव्वजीवा पं० तं०- एगिदिया बेइंदिया तेइंदिया चउरिंदिया नेरतिता पंचेंदियतिरिक्खजोणिया मणुस्सा देवा सिद्धा 11 अथवा णवविहा सव्वजीवा पं० तं०- पढमसमयनेरतिता अपढमसमयनेरतिता जाव अपढमसमयदेवा सिद्धा 12 नवविहा सव्वजीवोगाहणा पं० 20- पुढविकाइओगाहणा आउकाइओगाहणा जाव वणस्सइकायउगाहणा बेइंदियओगाहणा तेइंदियओगाहणा चउरिंदियओगाहणा पंचिंदियओगाहणा 13 जीवाणं नवहिं ठाणेहिं संसारं वत्तिंसुवा वत्तंति वा वत्तिस्संति वा, तं०-पुढविकाइयत्ताए जावपंचिंदियत्ताए 14 // सूत्रम् 666 // ___णवहिं ठाणेहिं रोगुप्पत्ती सिया तं०- अच्चासणाते अहितासणाते अतिणिद्दाए अतिजागरितेण उच्चारनिरोहेणं पासवणनिरोहेणं अद्धाणगमणेणं भोयणपडिकूलताते इंदियत्थविकोवणयाते 15 // सूत्रम् 667 // नवममध्ययन नवस्थानम्, सूत्रम् 664-667 अभिनन्दनसुमयीन्तरम्, जीवादिसद्भावपदार्थाः, संसारसमापन्नभेदपृथ्व्यादिगत्यागतिसर्वजीवभेदाऽवगाहनासंसारवर्तनानि, रोगोत्पत्तिकारणानि // 790 //
SR No.600433
Book TitleSthanang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaychandrasguptasuri
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_sthanang
File Size33 MB
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