________________ श्रीस्थानाङ्गं श्रीअभय० वृत्तियुतम् भाग-२ // 773 // णमालगा देवा अट्ठ गंगाकुंडा अट्ट सिंधुकुंडा अट्ठ गंगातो अट्ठ सिंधूओ अट्ठ उसभकूडा पव्वता अट्ट उसभकूडा देवा पं० 15, जंबूमंदरपुरच्छिमेणं सीताते महानतीते दाहिणेणं अट्ठ दीहवेअड्डा एवं चेव जाव अट्ठ उसभकूडा देवा पं०, नवरमेत्थ रत्तारत्तावतीतो तासिं चेव कुंडा 16, जंबूमंदरपञ्चच्छिमेणं सीतोताए महानदीते दाहिणेणं अट्ठ दीहवेयड्डा जाव अट्ठ नट्टमालगा देवा अट्ठ गंगाकुंडा अट्ठ सिंधुकुंडा अट्ठ गंगातो अट्ठ सिंधूओ अट्ठ उसभकूडपव्वता अट्ठ उसभकूडा देवा पण्णत्ता 17, जंबूमंदरपञ्चत्थि० सीओताते महानतीते उत्तरेणं अट्ठ दीहवेयड्डा जाव अट्ठ नट्टमालगा देवा अट्ठ रत्तकुंडा अट्ठ रत्तावतिकुंडा अट्ठ रत्ताओ जाव अट्ठ उसभकूडा देवा पं०१८॥सूत्रम् 639 // मंदरचूलिया णं बहुमज्झदेसभाते अट्ठ जोयणाई विक्खंभेणं पं०१९।। सूत्रम् 640 // धायइसंडदीवे पुरथिमद्धेणंधायतिरुक्खे अट्ठजोयणाई उई उच्चत्तेणं प० बहुमज्झदेसभाए अट्ठजोयणाई विक्खंभेणं साइरेगाई अट्ठ जोयणाई सव्वग्गेणं पं० एवं धायइरुक्खातो आढवेत्ता सच्चेव जंबूदीववत्तव्वता भाणियव्वा जाव मंदरचूलियत्ति एवं पञ्चच्छिमद्धेवि महाधाततिरुक्खातो आढवेत्ता जाव मंदरचूलियत्ति एवं पुक्खरवरदीवड्दपुरच्छिमद्धेवि पउमरुक्खाओ आढवेत्ता जाव मंदरचूलियत्ति एवं पुक्खरवरदीवपञ्चत्थि० महापउमरुक्खातो जाव मंदरचूलितत्ति // सूत्रम् 641 // जंबूदीवे 2 मंदरे पव्वते भद्दसालवणे अट्ट दिसाहत्थिकूडा पं० तं०- पउमुत्तर नीलवंते सुहत्थि अंजणागिरी कुमुते य / पलासते वडिंसे (अट्ठमए) रोयणागिरी॥१॥१जंबूदीवस्सणंदीवस्स जगती अट्ठ जोयणाई उई उच्चत्तेणं बहुमज्झदेसभाते अट्ठ जोयणाई विक्खंभेणं २॥सूत्रम् 642 // जंबूदीवे 2 मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं महाहिमवंते वासहरपव्वते अट्ठ कूडापं० तं०- सिद्धे महहिमवंते हिमवंते रोहिता हरीकूडे। आष्टममध्ययन आष्ठस्थानम. सूत्रम् 635-644 जम्याधुश्चत्वादि, तिमिसगुहाधुश्चत्वम्, जम्बूपूर्व-पश्चिमसीतासीतोदोत्तरदक्षिणविजयतद्राजधान्यः, उत्कृष्टपदजिनादयः, दीर्घवैताब्यतिमिसादिगुहाप्रभृतयः, मेरुचूलामध्यविष्कम्भः, धातकीवृक्षोच्चत्वादि, दिग्हस्तिकटानि, जगत्या उच्चत्वम् महाहिमवद्-रुक्मिरुचकादि-कूटानि, दिकुमार्यः, तिर्यग्मिश्रोत्पत्रकल्पतदिन्द्रपारियानिकविमानानि // 773 //